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________________ १८० सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना F रो | ले | भे 16 | F F | P द्धया | | B | 4 | | FF || | | | | उपर्युक्त चित्र में वामभाग वाले पंक्ति चतुष्टय में ऊपर वाले कोष्ठ से नीचे की ओर तथा दक्षिणभागस्थ पंक्ति चतुष्टय में नीचे के कोष्ठ से ऊपर की ओर अनुलोम पाठ करने से निम्नलिखित गूढ-श्लोक का उत्थान होता है कमाशु न तयारेभे न्यायीद्ध्यायं क्षमातले । हेयानयामयाकारोमयापेतो यतोऽत्रपु॥ उक्त गूढ़ श्लोक का उत्थान होने से यह श्लोकगूढ़ अर्धभ्रम है । (vi) सर्वतोभद्र जिसमें श्लोक का सर्वतोभ्रमण अर्थात् अनुलोम-प्रतिलोम उभयविध भ्रमण से पादोत्थान हो जाता हो, उसे सर्वतोभद्र कहते हैं । द्विसन्धान-महाकाव्य में इसका विन्यास इस प्रकार हुआ है वनेऽपूरिरिपूनेव नेयताक्षक्षतायने। पूतानेककनेता पूरिक्षकर्यर्यकक्षरि ।। १. द्विस,१८.१२२ २. 'तदिष्टं सर्वतोभद्रं भ्रमणं यदि सर्वतः ॥',काव्या.,३.८० ३. द्विस,१८.५८
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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