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________________ १६४ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना (iii) व्यपेत प्रथम पादगत आदिमध्य यमक कुलपर्वता: कुलपराभवत: समवैमि तेऽद्य निजमुन्नमनम् । कलयन्ति फल्गु विलयं मनुते सवितोदयास्तमयसानुमतोः ॥ (iv) व्यपेत प्रथम-द्वितीय पादगत आदिमध्य यमक गजेषु नष्टेष्वगजेष्वनायकं रथेषु भग्नेषु मनोरथेषु च । न शून्यचित्तं युधिराजपुत्रकं पुरातनं चित्रमिवाशुभद् भृशम् ॥२ (v) अव्यपेत-व्यपेत प्रथमपादगत आदिमध्य यमक सुरासुरातिक्रमविक्रमस्य दशास्यनामोद्वहतः स्वसारम् । सुतापयोगादभवत्सुदुःखा कामेषु भग्नेषु कुत: सुखं वा ॥३ (च) आद्यन्त यमक __व्यवधान तथा अव्यवधान से होने वाली आवृत्ति के आधार पर इसके अनेक भेद किये गये हैं । अव्यपेत आवृत्ति वाले आद्यन्त यमक का भरत ने काञ्ची यमक नाम से उल्लेख किया है, तो व्यपेत आवृत्ति वाले आद्यन्त यमक का रुद्रट आद्यन्त यमक नाम से ही उल्लेख करते हैं । द्विसन्धान-महाकाव्य में उपलब्ध इस यमक के उदाहरण इस प्रकार हैं गता हयेभ्योऽप्यसवोऽतिवेगतो गजा मुमूर्छः शरवर्षतोऽगजाः । रथा विभिन्ना: पतिता मनोरथा नरा गतास्ते न समानरागताः ।। यहाँ प्रत्येक पाद के आदि और अन्त में क्रमश: ‘गता', 'गजा', 'रथा' और 'नरागता' पदों की आवृत्ति हुई है, अत: यहाँ पादगत व्यपेत आद्यन्त यमक है ।प्रथम आदि पादों के आद्यर्ध की द्वितीयादि पादों के अन्त्यार्ध में होने वाली आवृत्ति को भी आद्यन्त यमक कहा गया है । द्विसन्धान-महाकाव्य में इस प्रकार का उदाहरण भी उपलब्ध होता है १. द्विस.,१२.१३ २. वही,६.३० ३. वही,५६ ४. वही,६.४३ ५. का.रु,३.३२
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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