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________________ १६३ अलङ्कार-विन्यास (iii) अव्यपेत चतुर्थपादगत अन्त यमक उत्पलायत लोलाक्ष: कामुकीभिरुपारत: । किन्नराणां गण: क्रीडन् प्रसन्नपवने वने ॥ (iv) व्यपेत प्रथम-द्वितीय पादगत अन्त यमक कवेरपार्थामधुरा न भारती कथेव कर्णान्तमुपैति भारती। तनोति सालंकृतिलक्ष्मणान्विता सतां मुदं दाशरथेर्यथा तनुः ॥२ (v) व्यपेत द्वितीय-चतुर्थपादगत अन्त यमक गाढाकल्पकनिष्ठत्वं दूरं कुर्वंश्छलेन ताम्। स्वपदव्यवसायाय क्षिप्रं जहे सतीव्र ताम्॥ (घ) आदिमध्य यमक पूर्वोक्त यमक भेदों की भाँति इसके भी व्यपेत तथा अव्यपेत आवृत्ति के आधार पर कई भेद किये जा सकते हैं । उनको विभिन्न पादों में यमकित कर पुन: विभिन्न रूपों में विभक्त किया जा सकता है । द्विसन्धान में उपलब्ध इनके उदाहरण इस प्रकार हैं(i) अव्यपेत द्वितीय पादगत आदिमध्य यमक अध्यासीना निश्चला निस्तरङ्गानेतानेतानीलनीलान्प्रदेशान् । नीलाभ्राणां शङ्कय किं बलाका नो शङ्खानां पङ्क्तयस्ता विभान्ति ॥ (ii) अव्यपेत तृतीय पादगत आदिमध्य यमक सत्यग्रेसरसीतापहारिण्येषेत्यलोकयत् । यां यां तया तया रत्या दून: परमकाष्ठया ॥५ १. द्विस.,७.५ २. वही,१.५ ३. वही,७.९२ ४. वही,८.१० ५. वही, ९५
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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