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________________ १५९ अलङ्कार-विन्यास यहाँ प्रत्येक पाद के मध्य में क्रमश: ‘समुद्र', 'नयेन', 'मुदितं' तथा 'निजगौ' वर्ण समुदायों की व्यवधानरहित आवृत्ति हुई है, अत: अव्यपेत मध्य यमक है । इस सन्दर्भ में द्विसन्धान का पद्य ८.५ भी द्रष्टव्य है । इसी प्रकार भरत द्वारा विहित पादादि यमक एवं पादान्त यमक की शृङ्खला को जोड़ने के लिये दण्डी ने व्यपेत मध्ययमक का सर्जन किया। द्विसन्धान में उपलब्ध इसका उदाहरण इस प्रकार है पशुवच्छादयन्भीरु शूरानच्छादयं समम्। हृद्यस्वच्छादयन्धातोरस्त्रैः स्वच्छादयन्नभः ॥१ यहाँ सभी पादों के मध्य में 'छादयन्' पद के समान अक्षरों का समावेश होने के कारण व्यपेत मध्य यमक है । द्विसन्धान का एक अन्य पद्य १८.४९ भी द्रष्टव्य है। कहीं अव्यपेत तथा कहीं व्यपेत आवृत्ति रहने पर अव्यपेत-व्यपेत मध्ययमक होता है । द्विसन्धान में इसका प्रयोग इस प्रकार हुआ है असुतरां सुतरां स्थितिमुन्नतामसुमतां सुमतां महतां वहन् । उरुचितैरुचितैर्मणिराशिभिः स्वरूचितैरुचितैरवभात्ययम् ॥ यहाँ प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पादों के मध्य में क्रमश: ‘सुतरां', 'सुमतां' और रुचितै वर्णसमुदायों की व्यवधान रहित आवृत्ति हुई है, तो तृतीय पाद के मध्य में आवृत्त 'रुचितै' वर्णसमुदाय चतुर्थ पाद के मध्य में 'मणि' आदि वर्गों के व्यवधानसहित आवृत्त हुआ है, अतएव यह अव्यपेत-व्यपेत मध्य यमक है। संस्कृत काव्यशास्त्रियों ने 'आदि यमक' की भांति इसके भी अनेक भेद किये हैं । द्विसन्धान में उपलब्ध उन भेदों के प्रयोग इस प्रकार हैं(i) अव्यपेत प्रथमपादगत मध्य यमक जलाशयं दिशि दिशि पङ्कजीविनं नवोत्थितं नियतिषु देशकालयोः । विमर्च षष्ठिकमिव विद्विषं भुवि प्ररोपयन्नतुलमवाप य. फलम् ॥३ १. द्विस., १८.११ २. वही, ८.३ ३. वही,२.२३
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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