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________________ १५८ (iii) अव्यपेत तृतीय पादगत आदि यमक तस्मिन्कालेऽनुजोपायात् प्रस्थितं प्रतिकेशवं । विश्वविश्वम्भरानाथमित्थमूचेऽग्रजं वचः ॥ १ (iv) व्यपेत प्रथम-द्वितीय पादगत आदि यमक चक्रं दुःसहमालोक्य चक्रन्दुः सहसारयः । मृतोत्पन्नेव साश्वा साश्वासा सा वैष्णवी 'चमूः ॥२ (v) व्यपेत प्रथम-तृतीय पादगत आदि यमक कमला च दलान्तरस्रवज्जलबिन्दूज्ज्वललम्बमौक्तिकम् । कमलातपवारणं तदा शशिशुभ्रं बिभरांबभूव तत् ॥ ३ (vi) व्यपेत द्वितीय - चतुर्थ पादगत आदि यमक इति मोघं बभूवारिर्मन्त्रयुद्धमयुङ्क्त यत् । प्रागनालोचितस्यास्मिन् मन्त्रस्यावसर कुतः ॥४ सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य चेतना (ख) मध्य यमक आदि यमक की भाँति इसके भी व्यवधान तथा अव्यवधान के आधार पर विभिन्न भेद किये जा सकते हैं । द्विसन्धान में उपलब्ध इसके उदाहरण इस प्रकार हैं स्थिरसमुद्रसमुद्रसकौतुकाद्युगभुजं विनयेन नयेन च । तमुदितं मुदितं ह्यनुजोग्रवागिति विभुं निजगौ निजगौरवात् ॥५ १. द्विस., ७.२० २ . वही, १८.८० ३. वही, ४.२८ ४. वही,१८५९ ५. वही, ८.२०
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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