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________________ १४४ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना सम्मोह, संत्रास, ग्लानि, दीनता, शंका, अपस्मार, संभ्रम, मरण आदि इसके व्यभिचारी भाव होते हैं । कवि धनञ्जय के द्विसन्धान-महाकाव्य' में यत्र-तत्र भयानक रस के उदाहरण मिलते हैं । छठे सर्ग में सन्धान-विधा के माध्यम से एक ओर तो राम-लक्ष्मण और खर-दूषण के मध्य तथा दूसरी ओर अर्जुन-भीम तथा कौरव सेना के मध्य युद्ध की भीषणता में भयानक रस का ग्रथन हुआ है। कवि ने अतिशयोक्ति अलंकार की सहायता से वर्णन किया है कि किस प्रकार ज्या की टङ्कार-ध्वनि से गरुड़ की ध्वनि का भय हो जाने से नागपत्नियों के गर्भपात हो गये और नभचरों को भी ऐसा दारुण भय हुआ कि तलवार को मियान से निकालने का प्रयास करते-करते ही उन्हें यह विश्वास हो गया कि वे केवल मन्त्र-बल से ही शत्रु पर विजय पा सकते हैं । युद्ध की भीषणता ऐसी थी, जैसे कि सभी दिशाएं धूमकेतु से प्रभावित हो गयी हों। शस्त्र-संघर्ष से उत्पन्न धूसर प्रकाश-रेखाओं की पके हुए धान्य की बालों तथा यम की लम्बी तथा टेढ़ी जटाओं से उपमा करना नूतन एवं मनोहारी है पतत्रिनादेन भुजङ्गयोषितां पपात गर्भ: किल तार्थ्यशङ्कया। नभश्चरा निश्चितमन्त्रसाधना वने भयेनास्यपगारमुद्यताः ।। समन्ततोऽप्युद्गतधूमकेतवः स्थितोर्ध्वबाला इव तत्रसुर्दिशः । निपेतुरुल्का: कलमाग्रपिङ्गला यमस्य लम्बा: कुटिला जटा इव ॥ यहाँ युद्ध की भीषणता से उत्पन्न भय' स्थायी भाव है । दोनों पक्षों में होने वाला युद्ध आलम्बन विभाव है तथा नागपलियाँ, नभचर आदि आश्रय हैं । युद्ध की भीषणता उद्दीपन विभाव है। नागपत्नियों के गर्भ गिर जाना, नभचरों का मन्त्रबल पर ही विश्वास रह जाना आदि अनुभाव हैं । आवेग, सम्मोह, संत्रास, दीनता, संभ्रम आदि व्यभिचारी भाव हैं। इनके सहयोग से भयानक रस का परिपाक हुआ है। एक अन्य स्थान पर कवि युद्धोन्मत्त, ओंठ चबाते हुए, भृकुटियों को टेढ़ा करते हुए तथा जोर-जोर से हुंकार करते हुए योद्धाओं से युक्त युद्ध-दृश्य का वर्णन करता है १. द्रष्टव्य - ना.शा.,पृ.८९ तथा सा.द.,३.२३५-३८ २. द्विस,६.१६-१७
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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