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________________ रस-परिपाक १४३ तुलना करते हुए उसे अधिक शक्तिशाली तथा ग्रीष्म, अग्नि और सूर्य से भी अधिक ऊष्म बताया है— पश्यन्निव पुरः शत्रुमुत्पतन्निव खं मुहुः । निगिलन्निव दिक्चक्रमुद्गिलन्निव पावकम् ॥ संहरन्निव भूतानि कृतान्तो विहरन्निव । ग्रीष्माग्न्यर्कपदार्थेषु चतुर्थ इव कश्चन ॥१ इसी प्रकार कवि धनञ्जय ने सूर्पणखा / कीचक के अशिष्ट व्यवहार के कारण लक्ष्मण / भीम में उत्पन्न क्रोध का भी निरूपण किया है अभ्येत्य निर्भर्त्स्य जगाद वाचं स्त्रीत्वं परागच्छ न वध्यवृत्तिः । प्रेङ्खोलिताङ्गं रसनाकरेण मृत्योर्द्विजान्दोलनमिच्छसीव ॥२ प्रस्तुत प्रसंग में सूर्पणखा राम की ओर बढ़ने में असफल होने पर लक्ष्मण की ओर प्रवृत्त हुई, जबकि कीचक द्रौपदी की ओर प्रवृत्त हुआ और इस कर्म ने लक्ष्मण / भीम को कुपित कर दिया । कवि ने विचक्षणता से लक्ष्मण / भीम की उक्ति 'यम के शरीर को झकझोर कर जिह्वारूपी हाथ से उसके दाँत उखाड़ने जैसी नीचता क्यों की है। ?' में अद्भुत कल्पना समायोजित की है । भयानक रस संस्कृत महाकवियों ने अपने महाकाव्यों में भयानक रस को गौण रूप में स्वीकार किया है । धनञ्जय भी द्विसन्धान - महाकाव्य में इसी परिपाटी का अनुकरण करते हैं । भयानक रस का स्थायीभाव 'भय' है । भर्त्सनापूर्ण स्थिति से दूर रहने की आग्रहपूर्ण इच्छा ही भय है । भौतिक रूप से भय चाहे वास्तविक हो या काल्पनिक, इसके साथ व्यक्ति अपने आपको भलीभाँति अनुकूल नहीं कर पाता अथवा समुचित रूप से व्यवहार करने में असमर्थ पाता है । इसीलिए भयोत्पादक दृश्य भयानक रस के आलम्बन विभाव हैं । विवर्णता, गद्गद भाषण, प्रलय, स्वेद, रोमाञ्च, कम्प, इतस्तत: अवलोकन आदि इसके अनुभाव हैं। जुगुप्सा, आवेग, १. द्विस. ९.३१-३२ २. वही, ५.२३
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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