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________________ १०७ द्विसन्धान का महाकाव्यत्व लक्ष्मी और महर्द्धि, लक्ष्मी और हरि२, श्री, निधि और यश-शब्दों का अंकन हुआ है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि धनञ्जय ने 'चिह्नांकन' की महाकाव्यीय जैन परम्परा को विशेष योगदान दिया। ११. नामकरण महाकाव्य के नामकरण के सम्बन्ध में विश्वनाथ को छोड़कर अन्य सभी आचार्य मौन हैं । विश्वनाथ के अनुसार महाकाव्य का नामकरण कवि, कथावस्तु अथवा चरितनायक के नाम पर होना चाहिए। द्विसन्धान-महाकाव्य की कथावस्तु द्विसन्धानात्मक अर्थात् व्यर्थी शैली में प्रस्तुत की गयी है, इसीलिए इसका नामकरण द्विसन्धान-महाकाव्य हुआ है । इस महाकाव्य का अपरनाम 'राघवपाण्डवीय' हैयह नामकरण इसके चरितनायकों राघवों तथा पाण्डवों के नाम पर हुआ है । इस प्रकार पूर्ववर्ती महाकाव्यों के नामकरण विश्वनाथ के महाकाव्य-लक्षण में निहित नामकरण सम्बन्धी तथ्य को सत्यापित करते हैं। १२. नायक महाकाव्य में नायक का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है । भामह महाकाव्य के नायक का कुलीन, वीर और विद्वान् होने के साथ-साथ विजयी होना भी आवश्यक मानते हैं। उनके मतानुसार नायक का वध महाकाव्य में नहीं दिखाना चाहिए।६ दण्डी को महाकाव्य में चतुरोदात्त (चतुर + धीरोदात्त) नायक अभिमत है। रुद्रट का कथन है कि नायक त्रिवर्गों में से किसी एक वर्ण का, सर्वगुणसम्पन्न, शक्तिशाली,नीतिज्ञ, प्रजापालक और विजयी होना चाहिए। द्विसन्धान-महाकाव्य का नायक राम/कृष्ण भामह द्वारा गिनाये नायकोचित गुणों-कुलीनता, वीरता और विद्वत्ता से सम्पन्न है । महाकाव्य में उसका वध न दिखाकर, उसे विजयी दिखाया १. द्विस.,१६.८७ २. वही,१७९१ ३. वही,१८.१४६ ४. 'कवेर्वृत्तस्य वा नानानायकस्येतरस्य वा ॥ नामास्य...',सा.द.६.३२४-२५ ५. का. भा.,१.२२ ६. वही ७. .........चतुरोदात्तनायकम् ॥',काव्या.,१.१५ ८. का.रु.,१६.८-९
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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