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________________ १०६ १०. सर्ग - समाप्ति सर्ग-समाप्ति के संदर्भ में धनञ्जय से पूर्ववर्ती साहित्यशास्त्रियों ने अपने महाकाव्य-लक्षणों में कुछ नहीं कहा, किन्तु परवर्ती आचार्यों में विश्वनाथ का कथन है कि सर्ग के अन्त में अगले सर्ग की कथा की सूचना दी जानी चाहिए' और वाग्भट का मत है कि प्रत्येक सर्ग का अन्तिम पद्य कवि द्वारा अभिप्रेत शब्द - श्री, लक्ष्मी आदि से अंकित रहना चाहिए । द्विसन्धान- महाकाव्य में सर्ग-समाप्ति से सम्बद्ध विश्वनाथ द्वारा प्रतिपादित गुण नहीं, अपितु वाग्भट द्वारा प्रतिपादित गुण दिखायी देते हैं। इससे इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि इस प्रकार की प्रवृत्ति जैन महाकाव्यों में आरम्भ हो जाने पर, जैन काव्यशास्त्री वाग्भट को इसे अपने महाकाव्य-लक्षण में भी समुचित स्थान देना पड़ा । द्विसन्धान-महाकाव्य के प्रत्येक सर्ग का अन्तिम पद्य कवि के स्वाभिप्रेत शब्द 'धन' तथा 'जय' (धनञ्जय) से अंकित है । इन दो शब्दों के अतिरिक्त प्रथम से द्वादश तथा पञ्चदश से अष्टादश सर्गों तक क्रमशः विधि और विभूति‍, मङ्गल और यश, सुख और परमेष्ठी', अभ्युदय और अभिवृद्धि, निधि और लक्ष्मी, श्री', यश और विद्या, शास्त्र और प्रभु, शुभा और कल्याणी ११, श्री और धी१२, मन्त्र १३, श्री नारायण और सिद्ध १४, धी१५, श्री, १. ‘सर्गाऽन्ते भाविसर्गस्य कथायाः सूचनं भवेत् ॥', सा.द.,६.३२१ २. 'स्वाभिप्रेतवस्त्वङ्कितसर्गान्तम्', का.वा., पृ.१५ ३. द्विस. १.५० ४. वही, २.४३ ५. वही ३.४३ ६. वही, ४.५५ ७. वही, ५.६९ ८. वही, ६.५२ ९. वही, ७.९५ १०. वही, ८.५८ ११. वही, ९.५२ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना वही, १०.४६ १२. १३. वही, ११.४१ १४. वही, १२.५२ १५. वही, १५.५०
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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