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________________ =६] [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र निगहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलओ छिन्नइ बन्धं से ॥ ३६ ॥ आउत्तया जस्स न श्रत्थि काइ, इरियाए भासाए तहेमराए 1 श्रयाण निक्खेव दुगंछ. ए., १ न धीरजायं गुजाइ मग्गं ॥ ४० ॥ चिरं पि से मुण्डरुई भवित्ता, अथित्वए तवनियमेहि भट्टे । चिरं पिपणा किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए ॥ ४१ ॥ पोले व मुट्टी जह से असारे, अयन्तिर कृडकहावणे वा । ढाणी वेरुलिया से हग्ध होइ हु जाणएसु ॥ ४२ ॥ कुसील लिंग इह धारइत्तः, इसिज्भयं जीवियं वूहइत्ता | संजर संजयलपमाणो. विशिवाय गच्छद से चिरंपि ॥ ४३ ॥ विसं तु पी जह कालकूड, हाइ सत्यं जह कुग्गहीय । सो वि धम्मो विसग्रोवन्नो, हाइ बेयाल इवाविवन्नो ॥ ४४ ॥ जे लक्ख सुविण पउंजमाणे, निमित्तको ऊहल संपगाढे । १. वीर० । २. पोल्लात् मुट्ठी । ३. लाभमाणे । ४. इवाविवंधणो ।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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