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________________ श्रीउत्तराराध्ययन सूत्र ] कुहेड विजासवदारजीवी, न गच्छइ सरं तम्मि काले ॥ ४५ ॥ तमतमेणेव उ से असीले, सया दुरी परिया सुवे । संधान गतिरिक्खजोगिं, मोरंग विराहित्तु असा हुरूवे ॥ ४६ ॥ उद्देसियं की गडं नियागं, न मुंबई किंचि ग्रणेस णिजं । अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता, [ ८७ इनो चुए गच्छइ कट्टु पावें ॥ ४७ ॥ न त अरी कंठछेत्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरपया । से नाहि मच्चुमुहं तु पत्ते, पच्छाभितावेण दयाविणो ॥ ४८ ॥ निरट्टिया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तमट्ठे विवजासमेइ | इमे वि से नत्थि परे वि लोए, दुहि वि से भिजइ तत्थ लोए ॥ ४६ ॥ प्रमेव हा छन्दकुसीलरूवे, मग विरारोहेत्तु जिरणुत्तमां । कुररी विवा भोगरसाणु गिद्धा, निरट्ठसोया परियासमेइ सोश्वारा मेहावि ! सुभासियं इमं, श्ररणुसासणं नामगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाग जहाय सव्यं, ॥ ५० ॥ महानियण्ठाण वए पहेण ॥ ५१ ॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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