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________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] अन्नं पां च रहाणं च गन्धमल्लविलेवरं । 9 'मए नायमणायं वा, सां बाला नोवभुंजइ ॥ २६ ॥ खं पि मे महाराय, पासाओ वि न फिट्टइ । न य दुक्खा विमोह, एसा मज्झ अणाहया ॥ ३० ॥ ओहं एत्रमा सुदुक्ख माहु पुणो पुणो । वेणा अणुभविडं जे, संसारम्मि अणन्त ॥ ३१ ॥ सई च जइ मुञ्चज्जा, वेयणा विउला इओ । खन्तो दन्तो निरारम्भो, पव्वर अगरियं ॥ ३२ ॥ एवं च चिन्तइत्ताणं, पत्तो मि नराहिवा । परियन्तन्ती राईए, वेयणा से खयं गया ॥ ३३ ॥ तओ कल्ले पभायम्मि, आपुच्छित्ता बन्धवे । खन्तो दन्तो निरारम्भो, पञ्चइओऽणगारियं ॥ ३४ ॥ ततो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य । सव्वेसिं चेव भूयाणं, तसाण थावराण य ।। ३५ ।। अप्पा नई वेयरणी, श्रया में कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दरंग वं ।। ३६ ।। अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाग य । श्रप्पा मित्तममित्त च, दुपपट्टियसुपट्टिओ ॥ ३७ ॥ इमा हु अन्ना वि अणाहया निवा, तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि । नियण्ठधम्मं लहियाण वि जहा, [ ८५ सीयन्ति एगे बहुकायरा नरा ॥ ३८ ॥ जो पव्वइत्ताण महव्वयाई, सम्मं च नो फासयइ पमाया । १. तारिस रोगमावण्णो ।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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