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________________ कई रीते ? आचार्य तेनो जवाब आपतां कहे छे के जुदा जुदा क्षेत्रमां ज राखवा एवो नियम नथी. दीक्षा लीधा बाद विधिपूर्वक प्रवर्तन करे तो महानिर्जरानो लाभ ज छे, जो अविधिए प्रवर्तावे तो महामोहनीय कर्म बंधाय अने संसारमां चिरकाळ पर्यंन्त भमे. केवो साधु संभाळ राखी शके ? साध्वीना पालननी विधि कई छे ? ते संबंधी हुं तेने संक्षिप्तमां समजावुं छु. सहू भीयपरिसो-ना चार भांगा थाय छे. १ सहू भीयपरिसो, २ सहू अभीयपरिसो, ३ असहू भीयपरिसो अने ४ असहू अभीयपरिसो. प्रथम भंगनो परमार्थ ए छे के- धैर्यवंत, बळवंत, जितेन्द्रिय, संग्रहशील (वस्त्र, पात्रादिकनो संग्रह करवामां समर्थ), स्थिरचित्त, अल्पाहारी, उपधिक्षेत्रना गवेषक होय ते सहु कहेवाय; तेमज जेनाथी सर्व साध्वीओ भय पामे, डरने अंगे कई पण अकृत्य न करी शके, तेनी मुखप्रतिभाथी धूजती रहे तेने भीयपरिसो कहेवाय. आवां साधुना कब्जामां साध्वीओ रही शके, बाकीना त्रण भांगावाळा साधुओ साध्वीओनुं यथार्थ पालन करी शके नहीं. जो तेओ तेने राखे तो चारमासी गुरु प्रायश्चित्त आवे. बीजा भांगावाळा साधु पोते धैर्यवंत विगेरे गुणवाळा छे परन्तु साध्वीओने अंकुशमां राखी शके नहीं, त्रीजा भांगावाळा पोते ज समर्थ नथी-शुद्ध चारित्रपात्र नथी तो साध्वीओने कई रीते अंकुशमां राखी शके ? अने चोथा भांगावाळा साधु तो समर्थ नथी तेम भय पण उपजावी शके तेम नथी एटले प्रथम भांग सिवायना छेल्ला त्रणे भांगावाळा शाधुओ साध्वीनी सारसंभाळ राखी शके नहीं. पहेला भांगावाळा साधुए यावज्जीव साध्वीओने राखवी जोईए; जो न राखी शके तो शके तो चारमासी गुरु दंड आवे. पहेला प्रकारना साधुए साध्वीने दीक्षा आप्या बाद जो तेनी इच्छा जिनकल्पीपणुं स्वीकारवानी थाय तो अन्य गच्छमां तेवा साधुनी निश्रामां साध्वीने सोप्या पछी ज ग्रहण करी शके एवो कोई योग्य साधु न होय तो शास्त्रकार जिनकल्पीपणुं स्वीकारवानो निषेध करे छे. जिनकल्पीपणामां जे निर्जरा थाय तेना करतां अधिक निर्जरा साध्वीओना संरक्षणथी थाय छे. कह्यं छे के- “जिणकप्पट्ठिअस्स जा निज्जरा तओ विधीए संजती अणुपालेंतस्स विउलतरा णिज्जरा भवति ॥” हवे प्रंसगोपात्त श्रीनिशीथसूत्रना आठमा उद्देशाना भाष्य तथा चूर्णिमां जणावेल साधु साथेना साध्वीविहारने लगतुं वर्णन करवामां आवे छे. एक क्षेत्रमांथी बीजा क्षेत्रमां साध्वीओने लई जवी होय अने मार्गमां भय के उपद्रव थवानी शंका न रहेती होय तो साधु पहेला ते क्षेत्रमां जाय अथवा तो अमुक अमुक आंतरे मुकाम करे. मार्गमां भय होय तो साधु आगळ अने पाछळ एम सर्व प्रकारे विचरे. साध्वीना संसारी पक्षना कोई संबंधीए दीक्षा लीधी होय तो तेने साथे राखीने आचार्य बीजा • बेण साधुओ साथे विचरे. वळी विघ्ननो भय होय तो सार्थनो आश्रय ले. सहस्त्रयोधी सुभटे दीक्षा लीधेल होय तो तेने साथे लईने जाय. कोईक आचार्य आ संबंधमां एम पण कहे छे के साध्वीओ आगळ जाय ते सारुं, कारण के लघुशंकादिनुं निवारण करवामां हरकत न आवे. आ तो सामान्य विहारनी वात थई; विशेष वृत्तांत तो बृहत्कल्पनी टीकाना पहेला खंडना प्रांतभागद्वारा जाणवी. श्रीस्थानांगसूत्रना पांचमा स्थानकमां कह्यं छे के पांच कारणे साधु-साध्वी एकठा रहे तो पण जिनाज्ञानुं उल्लंघन थाय नहीं - १. कोई महाअटवीमां साधु-साध्वी साथे रहे, बेसे, सूवे तथा नैषेधिकी श्रीगच्छाचार - पयन्ना— १८६
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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