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________________ कर्यो छे. तेने भ्रष्ट करवाथी तीर्थंकरनी आशातनारूप महादोष उपजे छे, समकितनो नाश थाय छे, संसार परिभ्रमण वधे छे. जेम खेतरनुं रक्षण करवा माटे तेने फरती वाड करवामां आवे छे तेम ब्रह्मचर्यरूपी क्षेत्रने सुरक्षित राखवा माटे शास्त्रकारोए * नव वाड उपदेशी छे. तेनुं जो यथार्थ पालन करवामां आवे तो व्रतशिरोमणि ब्रह्मचर्यथी कदी पण पतित न थवाय. श्लेष्ममां पडी गयेल मक्षिका जेम पोतानी जातने मुक्त करी शकती नथी तेम साध्वीमां अनुरागी बनेल साधु परतंत्र बनी जाय छे. नवकल्पी विहार के दोष रहित आहारनी गवेषणा करी शकतो नथी तेमज मोक्षमार्ग पण साधी शकतो नथी. मोक्षमार्गना पथिके तो सदैव साध्वी-संगने वर्ज्य ज गणवो. आ संबंधमां कोई कहेशे के साध्वी - बंधनरूप छे तो पछी तेने दीक्षा ज न देवी, तेने बधो आचारविचार शीखवो छो, अध्ययन अर्थे साधु पासे आवे, साधु तेनी सार-संभाळ लेवा माटे वसतिस्थानमां जाय इत्यादिक कारणोमां साध्वी-संसर्ग करवो पडे छे तो तेमां शो लाभ समजवो ? तेनो जवाब ए छे के-विधिपूर्वक साध्वी ओने राखवी. तेनी सारसंभाळ लेवी ते तो अतीव निर्जरानुं कारण छे. कहां छे के 3 साहुस्स नत्थि लोए, अज्जासरिसी हुं बंधणे उवमा । धम्मेण सह ठवतो, न य सरिसो जेण असिलेसो ॥ ७० ॥ [ साधोर्नास्ति लोके, आर्यासदृशी हु बन्धने उपमा । धर्मेण सह स्थापयतो, न च सदृशो जानीह्यश्लेषः ॥ ७० ॥] गाथार्थ-आ जगतमां साध्वीने अविधिए अनुसरनार साधुने तेना समान बीजुं बंधन नथी अने साध्वीने धर्ममार्गमां स्थापन करनारने एना समान बीजी कोई निर्जरा नथी. विवेचन - सर्व सावद्यनुं प्रत्याख्यान करी सर्वविरति स्वीकारनार साधुने आ जगतमा कोई पण वस्तु बंधनकारक नथी; फक्त एक साध्वी ज बंधनकर्ता छे. जो तेने न अनुसरे अने धर्ममां स्थिर करे तो साधुने अतीव निर्जरानुं कारण थाय. श्रीनिशीथसूत्रना पंदरमा उद्देशाना भाष्य तथा चूर्णिमां कह्यं छे के- “पुच्छ सहुभीअपरिसो, चउभंगे पढमगे अणुण्णातो । सेसतिगे नाणुण्णा, गुरुगा परियट्टणे जं च ॥ १ ॥” शिष्य पूछे छे के-हे गुरो ! साधु तथा साध्वीना वर्गने भिन्न भिन्न क्षेत्रम राखवानुं आगममां फरमाव्युं छे के जेथी दोष न लागे परन्तु साध्वीओ करीए ज नहीं तो दोषोद्भव क्याथी थाय ? वळी आगममां श्राविकाने दीक्षा देवानो निषेध कर्यो नथी तो पछी तेओने संभाळवी * शीलव्रतनी नव वाडो आ प्रमाणे जाणावी. १ स्त्री, पशु अने नपुंसक रहित स्थानमा रहेवुं २. स्त्रीनी साथै सरागपणे कथा करवी नहीं, ३. स्त्री बेठी होय ते आसने पुरुष बे घडी पर्यंत बेसे नही तेमज पुरुष बेठो होय ते आसने स्त्री त्रण प्रहोर पर्यंत बेसे नहीं, ४. सरागपणे स्त्रीना अंगोपांग जोवा नहीं, ५. ज्यां स्त्री-पुरुष सूता होय तथा कामक्रीडा विषे वातो करता होय त्यांत प्रमुख आंतरे रहेवुं नहीं, ६. पूर्वे स्वस्त्री साथे भोगवेला कामभोग संभारे नहीं, ७. विकार जागे तेवो सरस-स्निग्ध आहार करे नहीं, ८. नीरस अधिक आहार ले नहीं तेमज, ९. शरीरनी टापटीप - विभूषा पण न करे. श्रीगच्छाचार - पयन्ना — १८५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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