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________________ श्रीदशाश्रुतस्कंधे प्रस्तावना प्रासंगिकम् विशेष टुकडा पडवाथी तो एक जण पौषध लेवा चरवलो-कटासणं लइने पौषधशालाए पौषध लेवा जाय त्यारे बीजो हाथमां झोळी लइने शाकभाजी लेवा जाय. वाहरे ! श्री वीतरागना भक्तो ! दुनियाने संपनी वातो करवी अने पोताने लेवा देवा नहि. शुं उपर प्रमाणे वर्तवाथी श्री वीतरागोक्त धर्मनी मश्करीना कारणभूत नथी थवातुं ? शासनदेव सर्वने सदबुद्धि आपो. इति प्रासंगिकम्. अथ पूर्वोक्त नियुक्तिकार महाराजा कालनिक्षेपाने जणावे छे के काल समयादिक छे. असंख्यात समयनी एक आवलिका. एवं सूत्र आलापकवडे यावत् संवत्सरं. अहिं ऋतुबद्ध अने वर्षारात्रिनो प्रगट अधिकार छे. चार मास शियाळाना अने चार उनाळाना एम आठ मास मुनिराज ग्रामानुग्राम विचरे, ते आठ मासथी न्यून के अधिक पण विचरे. प्र० न्यूनाधिक केम थाय ? उ. ज्यां मासकल्प कर्यो होय अने चोमासा योग्य बीजुं क्षेत्र न होइ त्यां ज रहेवू पडे तो आठ मासमां ओछा विचर्या गणाय. आठने स्थाने सात मास ज विहार थयो कहेवाय. अथवा आ प्रकारे पण ऊणा आठ मास कहेवाय. मार्गमां कादव घणो होय जेथी कार्तिकी पुनम पछी पण विहार कर्यो न होय , कादव-लीलोतरीना संघट्टाना कारणे एक मास अधिक रह्या होय, पछी सात मास विचर्या होय तो ऊणा आठ मास विहार गणाय. हवे अधिक रहेवा- कारण बतावे छे. अषाढ चौमासी प्रतिक्रम्या पछी प्रायः शुद्ध क्षेत्र न मळे तो एक मासने वीस दिवस सुधी तपास करे. छतां न मळे तो ज्यां भादरवा सुद पांचम आवे त्यां पर्युषणा करवी, ए प्रमाणे नव मास ने वीस दिवस अधिक थया. अथवा साधु भगवंत रस्तामां चालतां साथना कारणे अषाड चौमासीथी आगळ पांच-दश दिवस के एक मास ने वीस दिवसे क्षेत्र प्राप्त थया, त्यारे पर्युषणा करे. एथी पण आठ मास अधिक विहार थयो गणाय. अथवा कार्तिकी चौमासी दिवस नक्षत्र आचार्यश्रीने असाधक होय अथवा ते दिवस विघातक होय तेथी जरा वहेलो थयो होय तो पण आठ मासथी अधिक विहार थयो कहेवाय. एथी एम थयुं के सामान्य कारणे पण कीच्चड आदिनुं कारण नडतुं न होय तो विहार थाय छे, जेथी आठ मासथी अधिक एक दिवस यावत् एक मास यथासमाधि विचरे. प्रतिमाधारी मुनिराज ऋतुबद्धकालमा एक अहोरात्रि एक क्षेत्रमा रहे. అంతంతమంతయం XXI ) అంతంతమవుతుంది
SR No.022580
Book TitleDashashrut Skandh Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri, Abhaychandravijay
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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