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________________ अष्टमी दशानी विगत छे. भूतकाळनो उपकार तो एटला माटे गण्यो छे के ऐतिहासिक महापुरुषोना जीवनचरित्रो उपरथी आपणा आत्माने प्रेरणा मळे. वर्तमानकाळनो उपकार तो उपरोक्त छे. हवे रह्यो भविष्यकाळ. भावि काल अप्राप्त होवाथी आपणं शं' कल्याण करे ? ए स्वाभाविक प्रश्न रहे. पण एटलुं तो जरुर समजवू जोईए के जो भविष्यकाळनो विकल्प न होत तो बधा ज नास्तिकवादी थात अने साचो खोटो पुरुषार्थ पण करत नहि, माटे पुरुषार्थ माटे भाविकालनो विकल्प पण उपकारी छे ! हवे आपणे मुद्दानी वात उपर आवीए. जेम प्रभुपडिमा उपकारी छे तेम तिथि आदि काळ पण उपकारी छे. जेम प्रभुपडिमानुं माप मुद्रा, शुद्ध काष्ठ, पाषाण के धातु उपयोगी छे तेम काळमां पण शुद्ध तिथि-वार-योग-मुहूर्त-नक्षत्रकर्ण विगेरे उपयोगी छे. तेथी आत्मआराधना माटे तिथिओना त्रण विभाग पाडवामां आव्या छे. दर्शन, ज्ञान अने चारित्र-चौदश-आठम-अमावास्या अने पुनम ए चारित्र तिथि छे. बीज, पांचम अने अगियारस ए ज्ञाननी तिथि छे. बाकीनी बधी दर्शननी तिथिओ छे. तेमां बन्ने पक्षनी पांचम आठम-अगियारसचौदश आदि लेवी. केटलाक महानुभावो कृष्णपक्षनी तिथिओ पर लक्ष्य ओछु आपे छे, तो ए तिथिओए शुं गुह्नो कर्यो ए समजातुं नथी. ए उपरथी समजवानुं के बधाय समयो-विपलो-पलो-मुहूर्तो-दिवसो-रात्रिओ तेमज बधा ज अठवाडीयांपक्षो-महिना-ऋतुओ-चातुर्मास तेमज दरेके दरेक वरसमां आराधना करवानी छे. चतुर्विध श्री संघ एकत्रित थईने जे सामाचारी नक्की करे तेने अनुसतुं थाय तो के, सरस थाय. एक समय मात्र पण प्रमाद सेववानो नथी. जेना श्वासोच्छवासमां पण आराधना ने आराधना ज होय छे, तेवा मुनिराजोने तिथि विगेरे आलंबन फक्त व्यवहाररूप ज छे, पण श्रावक समाजने एनी विशेष जरुर होवाथी गीतार्थ मुनिवरोए एक व्यवस्था करी देवी जोईए के जेथी दरेक गच्छवासीओ एक ज दिवसे ज्ञान तथा चारित्रनी विशिष्ट आराधना करी शके. विशेष टुकडा पडवाथी तो एक जण पौषध लेवा चरवलो-कटासणुं लइने पौषधशालाए पौषध लेवा जाय त्यारे बीजो हाथमां झोळी लइने शाकभाजी लेवा जाय. वाहरे ! श्री वीतरागना भक्तो ! दुनियाने संपनी वातो करवी अने पोताने लेवा देवा नहि. शुं उपर प्रमाणे वर्तवाथी श्री वीतरागोक्त धर्मनी मश्करीना कारणभूत नथी थवातुं ? शासनदेव सर्वने सदबुद्धि आपो. इति ఉదయం గుంతుంతయుగం యుగం XX యంయంయంయంయంయుతం
SR No.022580
Book TitleDashashrut Skandh Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri, Abhaychandravijay
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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