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________________ अष्टमी दशानी विगत पर्युषणनी मर्यादा यथालंदिक पडिमाधारी मनिराज पांच अहोरात्रि एक क्षेत्रमा रहे. जिनकल्पी मुनिराज एक मास एक क्षेत्रमा विचरे, अने परिहारविशुद्धि तपस्वी पण एक क्षेत्रमा एक मास स्थिरता करे. स्थविरकल्पी मुनिराजो जो कोई जातनो उपद्रव न होय तो एक क्षेत्रमा मासकल्प करे, अने उपद्रव होय तो महिनानी अंदर पण विहार करे, अथवा बीजे उपद्रव होय तो अधिक पण रहे. ए प्रमाणे ऊणा अधिक आठ मास स्थविरकल्पी मुनिओने जाणवा. परंतु पडिमाधारी आदि मुनिराजोने तो नक्की आठ महिना यथाविधि विहार करवो अने चार महिना स्थिरता करवी एवो कल्प छे. स्थविरकल्पी मुनिराजने माटे कालमर्यादा बतावे छे. अषाड शुद दशमथी चातुर्मास योग्य क्षेत्रने नक्की करे. पछी त्यां विचरी संथारादि ग्रहण करी चोमासी प्रतिक्रमे अने पांच दिवसोवडे पर्युषणा कल्प करे. श्रावण वदी पांचमे पर्युषण करे. साथे रहेला मुनिओने संथार मल्लकादि आचारने बतावी ग्रहण करावे. ए प्रमाणे अषाड सुद १५ थी यावत् मागसर वद दसम सुधी एक क्षेत्रमा रहे. एक मासने वीस दिवस पहेलां जो गृहस्थो पूछे के आप चोमासुं रह्या छो ? तो अभिवर्धित संवत्सरमां जो अधिक मास आव्यो होय तो अषाड पूर्णिमाथी वीस दिवस गया पछी कहे के अमे चोमासु रह्या छीए, पण वीस दिवस अगाउ न कहे के अमे चोमासु रह्या छीए. बीजा चंद्रादि त्रण संवत्सरमां एक मासने वीस दिवस पहेला रह्या छीए एम कहेवू न कल्पे. प्रश्न : एबुं शुं कारण के जेथी कहेवू न कल्पे ? उ. : कदाच अशिवादि कारणो उपस्थित थयां होय तो विहार करवो पडे त्यारे गृहस्थो एम माने के साधुओं कंई जाणता नथी. मृषावाद बोले छे. जुओने रह्या छीए कहीने जता रह्या. अथवा वरसाद सारो न थयो होय तो लोको अवर्णवाद बोले, अथवा रह्या छीए एम कहे तो लोक जाणे के वरसाद सारो थवानो छे माटे दाणादुणी वेची नांखीए. वाववा माटे हल विगेरे अधिकरणो सज्ज करवा मांडे तेथी अनेक दोषो उत्पन्न थवानो संभव छे माटे वीस दिवस अथवा एक मास ने वीस दिवस पहेलां चोमासु रह्या छीए एम कहेवू कल्पे नहि. अषाड पूर्णिमाए चोमासुं रहेल मुनिराजो जो तृण, डगलादि लीधा होय अने पर्युषणाकल्प कर्यो होय तो श्रावण वद पांचमे पर्युषणा करे. योग्य क्षेत्र ఉతంతుంతంతంతం XXII తంతంగంంంంంం
SR No.022580
Book TitleDashashrut Skandh Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri, Abhaychandravijay
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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