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________________ प्रथम महाव्रत की प्रतिज्ञा पढमे भंते! महव्वए पाणइवायाओ वेरमणं सव्वं भंते पाणाइवायं पच्चक्कखामि । से सुहुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वा नेव सयं पाणे आइवाएजा नेवऽन्नेहिं पाणे अइवायाविज्जा पाणे अइवायंते वि अन्ने न समणुजाणिज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्न न समणुजाणामि तस्स भंते! पड़िक्रमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । पढमे भंते! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ पाणइवायाओ वेरमणं ! शब्दार्थ - भंते! गुरुवर्य ! पढमे पहले महव्वए महाव्रत में पाणाइवायाओ एकेन्द्रिय आदि जीवों की हिंसा से वेरमणं दूर होना, भगवान् ने फरमाया है, अतएव भंते हे गुरुवर ! सव्वं समस्त पाणाइवायं जीवों की हिंसा करने का पच्चक्खामि प्रत्याख्यान लेता हूं. से उन सुमां वा' सूक्ष्म बायरं वा वादर तसं वा त्रस थावरं वा स्थावर पाणे जीवों का सयं खुद अइवोएज्जा विनाश करे नेव नहीं अन्नेहिं दूसरों के पास पाणे त्रस स्थावर जीवों का अइवायाविज्जा विनाश करावे नेव नहीं अड्वायंते त्रस स्थावर जीवों का विनाश करते हुए अन्ने वि दूसरों को भी न समणुजाणेज्जा अच्छा समझे नहीं. ऐसा जिनेश्वरों ने कहा, इसलिये हे गुरुवर्य ! जावज्जीवाए जीवन पर्यन्त मैं तिविहं कृत, कारित, अनुमोदित रूप त्रिविध हिंसा को मणेणं मन वायाए वचन काएणं काया रूप तिविहेणं त्रिविध योग से न करेमि नहीं करूं न कारवेमि नहीं कराऊं करतं करते हुए अन्न पि दूसरे को भी न समणुजाणामि अच्छा नहीं समझं भंते हे प्रभो ! तस्स उस भूतकाल में की गई हिंसा की पडिक्कमामि प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करुं निंदामि आत्म- साक्षी से निंदा करूं गरिहामि गुरु- साक्षी से गर्हा करूं अप्पाणं हिंसाकारी आत्मा का वोसिरामि त्याग करूं भंते हे मुनिश ! पढमे पहले महव्वए महाव्रत में सव्वाओ समस्त पाणाइवायाओ त्रस स्थावर प्राणियों की हिंसा से वेरमणं अलग होने को उवट्ठिओमि उपस्थित हुआ हूं। दूसरे महाव्रत की प्रतिज्ञा अहावरे दोच्चे भंते! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं सव्वं भंते! मुसावायं पच्चक्खामि । से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं वज्जा नेवऽन्नेहिं मुसं वायाविज्जा मुसं वायंते वि अन्ने न समणुजाणिज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । दोच्चे भंते! महव्वए उवट्ठओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं । १) यहाँ पर 'वा' शब्द तज्जातीय ग्रहण करने के वास्ते है। जैसे त्रयकाय में सूक्ष्म-छोटे शरीरवाले कुन्थु आदि, बादर - मोटे शरीरवाले गो महिष हाथी आदि, और स्थावर जीवों में सूक्ष्म वनस्पति आदि, बादर पृथ्वी आदि, इसी प्रकार सुक्ष्म वनस्पति में भी सूक्ष्म, बादर और पृथ्वी आदि में भी सूक्ष्म, बादर की योजना स्वयं कर लेना चाहिये ! श्री दशवैकालिक सूत्रम् / २३
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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