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________________ शब्दार्थ - अह इसके बाद भंते! हे मुनिन्द्र ! अवरे आगे के दोच्चे दूसरे महव्वए महाव्रत में मुसा वायाओ असत्य भाषा से विरमणं दूर रहना भगवान ने फरमाया है, अतएव भंते हे प्रभो ! सव्वं समस्त मुसावायं असत्य भाषण का पच्चक्खामि प्रत्याख्यान करता हूं से वह कोहा वा' क्रोध से लोहा वा लोभ से भया वा भय से हासा वा हास्य से सयं खुद मुखं असत्य वइज्जा बोले नेव नहीं अन्नहिं दूसरों के पास मुखं असत्य वायाविज्जा बोलावे नेव नहीं मुसं असत्य वयंते बोलते हुए अन्ने वि दूसरों को भी न समणुजाणेज्जा अच्छा समझे नहीं, ऐसा जिनेश्वरों ने कहा । इसलिये जावज्जीवाए जीवन पर्यन्त, मैं तिविहं कृत, कारित, अनुमोदित रूप त्रिविध असत्य भाषण को मणेणं मन वायाए वचन काएणं काया रूप तिविहेणं तीन योग से न करेमि नहीं करूं न कारवेमि नहीं कराऊं करतं करते हुए अन्नं पि दूसरे को भी न समणुजाणामि अच्छा समझं नहीं गुरु! हे गुरु! तस्स भूतकाल में बोले गये असत्य की पडिक्कमामि प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करूं निंदामि आत्म- साक्षी से निन्दा करूं गरिहामि गुरु साक्षी से गर्हा करूं अप्पाणं असत्य बोलने वाली आत्मा का वोसिरामि त्याग करूं भंते हे कृपानिधे ! दोच्चे दूसरे महव्वए महाव्रत में सव्वाओ समस्त मुसावायाओ असत्य भाषण से वेरमणं दूर रहने को उवट्ठियोमि उपस्थित हुआ हूं। तिसरे महाव्रत की प्रतिज्ञा अहावरे तच्चे भंते! महव्वए अदिणादाणाओ वेरमणं सव्वं भंते! अदिणादाणं पच्चक्खामि । से गामे वा नगरे वा रणे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेवं सयं अदिणं गिणिहज्जा नेवऽन्नेहिं अदिणं गिण्हावेजा अदिणं गिण्हंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते । पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । तच्चे भंते! महव्वए ओम सव्वाओ अदिणादाणाओ वेरमणं । शब्दार्थ - अह इसके बाद भंते हे ज्ञाननिधे! अवरे आगे के तच्चे तिसरे मुहव्वए महाव्रत में अदिणादाणाओ चोरी से वेरमणं दूर होना जिनेश्वरों ने कहा है, अतएव सव्वं सभी प्रकार की अदिणा दाणं चोरी का भंते हे गुरू ! पच्चक्खामि मैं प्रत्याख्यान करता हूं १ यहाँ पर 'वा' शब्द एक-एक के तज्जातीय भेदों को ग्रहण करने वास्ते है। जैसेसद्भावप्रतिषेध-आत्मा, पुन्य, पाप, स्वर्ग, मोक्ष नहीं है ऐसा बोलना I असद्भावोद्भावन - आत्मा श्यामाकतंदुल प्रमाण या सर्वगत है ऐसी आगम विरुद्ध कल्पना करना II अर्थान्तर - हाथी को अश्व और अश्व को हाथी कहना III गर्हा - काणे का काणा, अन्धे को अन्धा कहना IV वे असत्य के चार भेद हैं। क्रोधादि चारों में इनकी योजना स्वयं कर लेना चाहिये । श्री दशवैकालिक सूत्रम् / २४
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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