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________________ वनस्पतिकायिक सबीया बीजों सहित चित्तमंतं सजीव पुढोसत्ता अंगुलाऽसंख्येय भाग प्रमाण अवगाहना में अलग-अलग अणेगजीवा अनेक जीवोंवाले अक्खाया कहे गये हैं सत्थपरिणएणं शस्त्र परिणत वनस्पति के बिना अन्नत्थ दुसरी सभी वनस्पति सचित्त है। -सर्वज्ञ सर्वदर्शी जिनेश्वर भगवान् महावीरस्वामी ने पृथ्वी, अप्, तेजस्, वायु, इन चारों स्थावरों में अंगुल की असंख्यातवें भाग की अवगाहना में अलग-अलग असंख्याता जीव और वनस्पतिकाय में असंख्याता तथा अनन्ता जीव प्ररुपण किये हैं। जो शस्त्रों से परिणत हो चुके हैं उनमें एक भी जीव नहीं है, अर्थात् वे अचित्त (जीव रहित) हैं, ऐसा कहा है। से जे पुण इमे अणेगे बहवे तसा पाणा। तं जहाअंडया पोयया जराउया रसया संसेइमा संमुच्छिमा उब्भिया उववाइया। जेसिं केसिं चि पाणाणं अभिक्कंतं पडिक्कतं संकुचियं पसारियं रुयं भंतंतसियं पलाइयं आगइ गइ विणाया। शब्दार्थ से अब पुण फिर जे जो इमे प्रत्यक्ष अणेगे द्विन्द्रिय आदि भेदों में अनेक बहवे एक-एक जाति में नाना भेदवाले तसापाणा त्रस जीव हैं तं जहा वे इस प्रकार हैं अंडया अंड से पैदा हए पक्षी आदि पोयया पोत से पैदा हए हाथी आदि जराउया गर्भ वेष्टन से पैदा हुए मनुष्य, गौ आदि रसया चलितरस में पैदा हुए जीव, संसेइमा जूं, लीख आदि संमुच्छिमा पुरुष-स्त्री के संयोग बिना पैदा हुए पतंग आदि उब्भिया भूमि को फोड़ कर पैदा होनेवाले तीड़ आदि उववाइया देव, नारकी आदि जेंसि जिनमें केसिं चि कितने ही पाणाणं त्रसजीवों का अभिक्कंतं सामने आना पडिक्वंतं पीछे लोटना संकुचियं शरीर को संकुचित करना पसारियं शरीर को फैलाना रुयं बोलना भंत भय से इधर-उधर भागना तसियं दुःखी होना पलाइयं भागना आगइ आना गइ जाना इत्यादि क्रियाओं को विणाया जानने का स्वभाव है। ___-अंडज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, समूर्छिम उद्भिज्ज और औपपातिक ये सभी त्रस जीव हैं और ये सामने आना, पीछा फिरना, शरीर को संकोच करना, शरीर का फैलाना, शब्द करना, भय से त्रसित हो इधर-उधर घूमना। दुःखी होना, भागना, आना, जाना आदि क्रियाओं को जाननेवाले हैं। जे य कीडपयंगा जा य कुंथुपिपीलिया सव्वे बेइंदिया सव्वे तेइंदिया सव्वे चउरिदिया सव्वे पंचिंदिया सव्वे तिरिक्खजोणिया सव्वे नेरइया सव्वे मणुआ सव्वे देवा सव्वे पाणा परमाहम्मिया। एसो खलु छठ्ठो जीवनिकाओ तसकाउ त्ति पवुच्चइ। " शब्दार्थ-जे य और. जो-कीडपयंगा कीट, पतंग आदि जाय और जो कुंथुपिपीलया कुन्थु, कीड़ी आदि सव्वे बेइंदिया सभी द्विन्द्रिय जीव सव्वे तेइंदिया सभी त्रिन्दिय जीव सव्वे चउरिदिया सभी चतुरिन्द्रिय जीव सव्वे पंचिंदिया सभी पंचेन्द्रिय जीव श्री दशवकालिक सूत्रम् / २१
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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