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________________ सुपणत्ता बारह पर्षदा में भले प्रकार से कहा मे मेरी आत्मा को अज्झयणं वह अध्ययन अहिज्झिउं अभ्यास करने के लिये सेयं हितकारक, और धम्मपणत्ती धर्मप्रज्ञप्ति रूप है। -जम्बूस्वामी पूछते हैं कि हे भगवन् ! अध्ययन करने के लिये आत्महितकारक और धर्मप्रज्ञप्ति रूप वह कौन-सा षड्जीवनिका अध्ययन है, जो काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान् महावीरस्वामी ने केवलज्ञान से जानकर, स्वयं आचरण करके और देवादि-सभा में बैठ कर प्ररूपण किया है? “छ जीवनिकाय का स्वरूप" इमा खलु सा छजीवणिया णामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुअक्खाया सुपणत्ता सेयं मे अहिज्झिउं अज्झयणं धम्मपणत्ती। तं जहा- . शब्दार्थ-इमा आगे कहा जानेवाला सा वह छज्जीवणिया णामज्झयणं षड्जीवनिका नामक अध्ययन जो खलु निश्चय करके कासवेणं काश्यपगोत्रीय समणेणं श्रमण भगवया भगवान् महावीरेणं श्रीमहावीरस्वामी ने पवेइया अलौकिक प्रभाव से कहा सुअक्खाया बारह पर्षदा में बैठकर कहा सुपणत्ता खुद आचरण करके भले प्रकार से कहा है। अहिज्झिउं अभ्यास करने के लिये धम्मपणत्ती धर्मप्रज्ञप्ति रूप अज्झयणं वह अध्ययन मे मेरी आत्मा को सेयं हितकारक है तं जहा वह इस प्रकार है. -सुधर्मास्वामी फरमाते हैं कि हे जम्बू! धर्मप्रज्ञप्ति रूप और आत्म-हितकर आगे कहा जानेवाला यह षड्जीवनिका नामक अध्ययन, जो काश्यप-गोत्रीय श्रमण भगवान् श्री महावीरस्वामी ने अलौकिक प्रभाव से देख, बारह पर्षदा में बैठ और स्वयं आचरण करके प्ररूपण किया है। वह इस प्रकार है • १. राजगृही नगरी के शेठ रिखभदत्त की स्त्री धारिणी के पुत्र, अन्तिम केवली, जिन्होंने निन्यानवे करोड़ सोनइया और नवपरिणीत आठ स्त्रियों को छोड़ कर सोलहवर्ष की उम्र में ५२७ के परिवार से सुधर्मस्वामी के पास दीक्षा ली। और जो १६ वर्ष का गृहस्थ, २० वर्ष का छद्मस्थ, ४४ वर्ष का केवल पर्याय पूर्ण कर के वीरनिर्वाण के बाद ६४ वर्ष पश्चात मोक्ष गये। २ विविध प्रकार की तपस्या करनेवाले महान तपस्वी को 'श्रमण' कहते हैं। ३. कोल्लाग गाँव के धम्मिल ब्राह्मण की स्त्री भहिला के पुत्र, भगवान् के म्यारह गणधरों में से पांचवे गणधर, जिन्होंने ५०० विद्यार्थीयों के परिवार से अपापानगरीमें वीरप्रभु के पास दीक्षा ली, और जो ५० वर्ष गृहस्थ, ४२ वर्ष चारित्र (छद्यस्थ) तथा ८ वर्ष केवली पर्याय पाल के वीरनिर्वाण से वीसवे वर्ष मोक्ष गये।। . ४. हाथ की हथेली पर रक्खी हुई वस्तु के समान लोकाऽलोक गज पदार्थों के सूक्ष्म बादर भावों को केवलज्ञान से देखनेवाले। ५. अग्नीकूण में गणधर आदि i, विमानवासी देवियां ii, साध्वियाँ iii, नैऋतकूण में भवनपतिदेवियाँ iv, ज्योतिष्कदेवियाँ v, व्यन्तरदेवियाँ vi, वायुकूण में भवनपतिदेव vii, ज्योतिष्कदेव viii, व्यन्तरदेव ix, ईशानकूण में वैमानिकदेव x, मनुष्य xi, मनुष्यस्त्रियाँ xii, इन बारह प्रकार की पर्षदा में जिनेश्वर उपदेश देते हैं। - श्री दशवैकालिक सूत्रम् / १९
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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