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________________ चतुर्थ सम्बन्ध — तीसरे अध्ययन का प्रतिपाद्य विषय साध्वाचार का पालन और अनाचारों का त्याग करना है । सदाचारों का पालन - षड्जीवनिकाय का स्वरूप जानकर, उसकी रक्षा किए बिना नहीं होता। इस संबन्ध से आए हुए चौथे अध्ययन में षड्जीवनिकाय और उसकी जया रखने का स्वरूप दिखाया जाता है— 66. 'छ जीव निकाय की प्ररूपणा किसने की " ? सुअं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु छज्जीवणिया णामज्झयणं समणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुअक्खाया सुपणत्ता सेयं मे अहिज्झिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती । शब्दार्थ — आउसंतेणं हे आयुष्यमन् ! जम्बू ! मे मैंने सुअं सुना भगवया भगवान् ने एवं इस प्रकार अक्खायं कहा, कि इह इस दशवैकालिक सूत्र में तथा जैनशासन में खलु निश्चय से छज्जीवणिया णामज्झयणं षड्जीवनिका नामक अध्ययन को समणेणं महातपस्वी भगवया भगवान् कासवेणं काश्यपगोत्रीमहावीरेणं महावीरस्वामी ने पवेइया केवलज्ञान से जान कर कहा सुअक्खाया बारह पर्षदा में बैठकर भली प्रकार से कहा सुपणता खुद आचरण करके कहा मे मेरी आत्मा को अज्झयणं यह अध्ययन अहिज्झिउं अभ्यास करने के लिये सेयं हितकर, और धम्मपणत्ती धर्मप्रज्ञप्ति रूप है। — पंचम गणधर श्रीसुधर्मस्वामी अपने मुख्य शिष्य जम्बूस्वामी को फरमाते हैं कि हे आयुष्मन् ! यह षड्जीवनिका नामक अध्ययन काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान् महावीरस्वामी ने समवरसण में बैठ कर बारह पर्षदा के सामने केवलज्ञान से समस्त वस्तुतत्त्व को अच्छी तरह देखकर प्ररूपण किया है। अतएव यह धर्मप्रज्ञप्ति रूप अध्ययन अभ्यास करने के लिये आत्म हित-कारक है। शिष्य का प्रश्न कयरा खलु सा छज्जीवणिया णामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुअक्खाया सुपणत्ता सेयं मे अहिज्झिउं अज्झयणं धम्मपन्नती ? शब्दार्थ — कयरा कौन-सा खलु निश्चय करके सा वह छज्जीवणिया णामज्झयणं षड्जीवनिका नामक अध्ययन, जो कोसवेणं काश्यपगोत्रीय समणेणं श्रमण भगवया भगवान् महावीरेणं महावीरस्वामी ने पवेइया कहा सुअक्खाया खुद आचरण करके कहा १ संपूर्ण ऐश्वर्य, संपूर्ण रूपराशि, संपूर्ण यशः कीर्त्ति, संपूर्ण शोभा, संपूर्ण ज्ञान, संपूर्ण वैराम्यः इन छः वस्तुओं के धारक पुरूष को 'भगवान्' कहते हैं। श्री दशवैकालिक सूत्रम् / १८
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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