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________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३७ इत्वरिक तप को सावकांक्ष तप भी कहते है क्यों कि निश्चित अवधि के पश्चात् भोजन की आकांक्षा रहती है। यावत्कात्थिक तप को निरवंकाक्ष तप भी कहते है क्योंकि इसमें जीवन पर्यन्त आहार का परित्याग होता है, साथ ही इसमें जीवन के प्रति भी कोई आकांक्षा शेष नहीं रहती है। इत्वरिक तप के छह भेदों के सन्दर्भ में उत्तराध्ययन सूत्र द्रष्टव्य है जो सो इत्तरिओ तवो सो समासेण छव्विहो। सेढि तवो पयरतवो घणों य तह होइ वग्गो य। तत्तो य वग्ग वग्गो पंचम छट्ठओ पइराण तवो। मण इच्छियचित्तत्थो नायव्वो होइ इत्तरिओ।। मन वांछित फल प्रदाता इत्वरिक तप संक्षेपत: छः प्रकार का है १. श्रेणी तप २. प्रतरतप ३. घनतप ४. वर्गतप ५. वर्ग-वर्ग तप ६. प्रकीर्ण तप। यावत्कथिक अनशन तप के भी दो भेद कहे गए हैं- पादोपगमन तथा भक्त प्रत्याख्यन। उववाई सूत्र में कहा हैआवकहिए दुविहे पण्णत्तेपाओवगमणे य भत्तपञ्चक्खाणे य। - उववाई सूत्र उत्तराध्ययन में भी कुछ भिन्न अपेक्षा से इसके दो भेद प्रस्तुत किए गए है जा सा अरूणसणा मरणे दुविहा सा वियाहिया। स वियारम वियारा कायचिटुं पई भवे॥ ___ - उत्तरा० ३०/१२ मरणकाल पर्यन्त अनशन तप के काय चेष्टा की अपेक्षा से दो भेद है- सविचार और अविचार। - -- --- जिस अनशन तप में शरीर की चेष्टा हिलना,चलना, बाहर भ्रमण करना आदि, काय व्यापार चालू रहते हों वह 'सविचार अनशन' कहलाता है तथा जिसमें शरीर की समस्त क्रियाएँ बंध होकर देह बिल्कुल स्थिर निष्पंद-सी हो जाती है वह अनशन की स्थिति- 'अविचार अनशन' कहलाती है। २. अवमौदर्य (ऊनोदरी) - आहार, उपधि और कषाय को न्यून (कम) करना अवमौदर्य ऊनोदरी तप कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है- १. द्रव्य ऊनोदरी २. भाव ऊनोदरी।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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