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________________ ३६ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९।१ ६. कायाक्लेश: - धर्माराधनायै स्वेच्छापूर्वकं शरीर क्लेशम्। कायाक्लेशोऽनेक विध: जैनागमेषु प्रतिपादित:। . * सूत्रार्थ - अनशन, अवमौदर्य, वृत्ति परिसंख्यान रस परित्याग, विक्तशय्यासन तथा कायाक्लेश ये छ: तप हैं। * विवेचनामृतम् * कर्मवासनाओं को क्षीण करने का अमाघ साधन है- 'तप'। जैन मत के अनुसार छ: बाह्य तप है। बाह्य तप उसे कहते हैं जिसमें शारीरिक क्रिया की प्रधानता हो तथा द्रव्यों की अपेक्षा होने के कारण अन्यों को परिलक्षित होता हो। स्थूल एवं अन्य जनों द्वारा ज्ञात होने पर भी बाह्य तप, आभ्यन्तर तप की परिपुष्टि के लिए नितान्त महत्पूर्ण है। बाह्य तप के छ: प्रकार हैं - १. अनशन - अनशन का अर्थ है- आहार का त्याग करने से मन के विषय विकार दूर हो जाते हैं। विषय निवृत्ति होने से मन में पवित्रता आती है, शरीर भी रोग-मुक्त रहता है। उपवास करने से मनुष्य नीरोग, सबल, स्वस्थ एवं तेजस्वी बनता है। उसका मनोबल समृद्ध होता है। गीता में भी कहा है- विषया विनिवर्तन्ते, निराहारस्य देहिनः। अनशन तप के भेद अनशन का अर्थ है- आहारत्याग। यह एक दिन का भी हो सकता है, छ: महीने का भी और जीवन पर्यन्त का भी। भगवती सूत्र में इसके विविध भेद के सन्दर्भ में इस प्रकार कहा हैअणसणे दुविहे पण्णत्ते तं जहां-इत्तिरिए य आवकहिए इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्तेतं जहां-चउत्थ भत्ते,छट्ठभत्ते, जाव छम्मासिए भत्ते। - भगवति सूत्र २५/७ अनशन तप के दो प्रकार है१. इत्वरिक - कुछ निश्चत काल के लिए। २. यावत्कत्थिक - जीवन पर्यन्त के लिए।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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