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________________ ९ । १ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ शरीर, अशुद्ध, अपवित्र है। उसके सात कारण है। सात कारणों के नाम इस प्रकार है १. बीज अशुचि २. उपष्टंभ अशुचि ३. उत्पत्ति अशुचि ४ उत्पत्तिस्थान अशुचि ५. अशुचिपर्दाथों का नल ६. अशुचिकारक । इस प्रमुख सात कारणों का संक्षिप्त वर्णन २१ १. बीज अशुचि - शरीर माता-पिता के रज - वीर्य - संयोग से उम्पन्न होता है। रूचिर (रज) और वीर्य ये दोनों पदार्थ अशुचिमय है। शरीर का बीज (उत्पत्ति का कारण ) अशुचि होने से शरीर अशुचि है। २. उपष्टभंग अशुचि - शरीर आहारादिक से परिपुष्ट होता है। आहार मुख-विवर से होता हुआ 'गले के श्लेष्मा लार से लिपट कर श्लेष्माशय में पहुँचता है। वहाँ श्लेषा (कफ) आहार को प्रवाही रूप में बना होता है। वह प्रवाही अत्यनत अशुचिमय होती है फिर वह ( प्रवाही) पित्ताशय में आती है। वहाँ पर वायु से उसके दो विभाग हो जातें है। जितने प्रमाण में प्रवाही का पाचन हो जाता है उतने प्रमाण में उसका रच बनता है तथा जिसका पाचन नहीं हुआ रहता है, खल (नाकाम कचरा) मल-मूत्र इत्यादि अशुचि पदार्थ रूप में उत्सर्जित होता है। प्रवाही आहार में बना हुआ रस शरीर की सात धातुओं में से पहली धातु है। रस से रूधिर दूसरी धातु है। रूधिर में से मांस तीसरी धातु है। मांस से मेद ( चर्बी ) चौथी धातु है । मेद से अस्थि (हड्डी) पाँचवी धातु है। अस्थि से मज्जा छठी धातु है तथा मज्जा से वीर्य (शुक्र) सातवीं धातु है। ये सात धातु पुरूषों में होती है तथा द्धी में मज्जा से रस (रज) बनता है मात्र यहीं अन्तर है। उभयलिङ्ग धातुएं सात ही होती है। ये रस इत्यादि अशुद्धि है। इन सप्त धातुओं पर ही शरीर टिकता है । अत: रस इत्यादि सात धातु देह का उपष्टंग (टिकाव) है। रस इत्यादि के अशुचि होने के कारण शरीर अशुचिमय है। ३. उत्पत्ति अशुचि - शरीर स्वयं अशुचि का भाजन (स्थान) है क्योंकि मल-मूत्र इत्यादि अने अशुचि पदार्थों शरीर भरा पड़ा है। वस्तुतः शरीर का निर्माण माता को कुक्षि में होता है। माता का उदर अत्यन्त अशुचि पदार्थों से भरा हुआ है । अतएव शरीर का उत्पत्ति स्थान भी अशुचिमय है। ४. उत्पत्ति स्थान अशुचि - शरीर की उत्पत्ति, जिस स्थान पर होती है, वह भी अशुचिता से परिपूर्ण होता है तथा शरीर स्वयं अशुचिता से भरपूर रहता है। अत: इसे उपत्तिस्थान अशुचिता से भी संयुक्त करते हुए शाद्धों में विवेचित किया गया है। ५. अशुचिपदार्थों का नल - जिस प्रकार नल खुलते ही जल निकलता है वैसे ही शरीर से मल, मूत्र रूपी अशुचि अहर्निश निकलती है । अत: इसे कुछ विवचकों ने अशुचि पदार्थों का नल भी कहा है तथा यह बात यथार्थ है।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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