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________________ १२] श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३।३ कृष्णलेश्या तथा सातवीं तमस्तमः प्रभा में भी कृष्णलेश्या है । वे क्रमशः अधिकाधिक तीव्र संक्लेश वाली हैं । नीचे-नीचे के नरकों में उत्तरोत्तर अधिक अधिक अशुभ लेश्याएँ होती गई हैं । यही बात परिणामादिक के विषय में भी समझनी । (२) अशुभ परिणाम - नरकों में पुद्गलद्रव्य के जो परिणाम होते हैं, वे उत्तरोत्तर अधिक अधिक अशुभ होते हैं । नरकों में होने वाला पुद्गलद्रव्य का यह अशुभ परिणाम दस प्रकार का है । बन्धन, गति, संस्थान, भेद, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु और शब्द इस तरह पुद्गल परिणाम के ये दस नाम हैं । * बन्धन - नरक में रहे हुए जीव के अपने शरीरादि के साथ सम्बन्ध में आने वाले पुद्गल अत्यन्त ही शुभ होते हैं । * गति - प्रशस्तविहायोगति नामकर्म का उदय होने से नरक में रहे हुए जीव की गति ऊँट आदि की जैसी अप्रशस्त होती है । * संस्थान - नरक में रहे हुए जीव की तथा वहाँ रही हुई भूमि की प्राकृति देखने वाले को उद्वेग उत्पन्न होवे, ऐसी होती हैं । * भेद – शरीर तथा भीतादिक में से खिरते हुए पुद्गल अत्यन्त अशुभ परिणाम वाले बनते हैं । * वर्ण - नरक में सर्वत्र अन्धकार छाया रहता है। पदार्थों से लेप किया हुआ सा दिखता है । प्रत्येक पदार्थ का वर्ण कृष्ण होता है । तल भाग श्लेष्मादिक अशुचि भय त्रास उपजावे ऐसा प्रतिशय * गन्ध - नरक की भूमि मल, मूत्र, रुधिर, इत्यादिक अशुभ पदार्थों से खरड़ायेली होने से, उसमें से सदा ही दुर्गन्ध छूटती है । * रस - नरक के पदार्थों का रस भी नोम आदि के रस से अधिक कटु कडुवा होता है । * स्पर्श-नरक के पदार्थों का स्पर्श भी अधिक उष्ण और बिच्छू के दंश इत्यादिक से भी अधिक पीड़ा उत्पन्न करने वाला होता है । * गुरु लघु - नारकी जीव के शरीर का अगुरुलघुपरिणाम भी अनेक दुःखों का श्राश्रय होने से अनिष्ट, अशुभ होता है । मुझे कष्ट से बचाइये ! ऐसे अनेक शब्द - हे माता ! हे पिता ! मुझे छुड़ाइये ! प्रकार के करुण शब्द श्रवरण मात्र से ही भय त्रास को उत्पन्न करते हैं । इस तरह पुद्गल द्रव्य का यह अशुभ परिणाम दस प्रकार का जानना । सारांश यह है कि इन रत्नप्रभादि सातों नरकों की भूमियाँ तिरछे, ऊपर और अनन्त भयानक, नित्य और अन्धकार से तमोमय बनी रहती नीचे समस्त दिशानों में सब तरफ 1 तथा जिनमें श्लेष्म - कफ, मूत्र
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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