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________________ हिन्दी पद्यानुवाद ] * हिन्दी पद्यानुवाद इन्द्र और सामानिक देव, त्रायस्त्रिशक पर्षदा । आत्मरक्षक लोकपाल, अनीक सप्तम सर्वदा || प्रकीर्ण अष्टम भेद पीछे, नवम आभियोगिक है । दशम भेद किल्बिषिक इम, सर्व निकाये प्रभेद हैं ।। २ ।। चतुर्थोऽध्यायः त्रायस्त्रिशक लोकपाल, ये भेद दोनों तज कर । अष्ट भेदे देव व्यन्तर, ज्योतिष्क भी मानकर ।। प्रथम भवनपति स्थाने ये, भेद दश सभी मानना । देव वैमानिक स्थाने भी, ये भेद दशे जानना ।। ३ ।। प्रथम के निकाय दो में, दो-दो ही इन्द्र जानिये । भवनपति के बीस इन्द्र, सूत्र से ये मानिये || देव व्यन्तर स्थान गणना, इन्द्र बत्तीस जानिये । कृष्ण नील कापोत तैजस्, ये चार लेश्या मानिये ॥। ४ ॥ * विषयसुख 5 मूलसूत्रम् - कायप्रवीचारा प्रा-ऐशानात् ॥ ४-८ ॥ शेषाः स्पर्श-रूप-शब्द- मनःप्रवीचारा द्वयोर्द्वयोः ॥ ४-६ ॥ परेऽप्रवीचाराः ।। ४-१० ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद भवनपति से ईशान तक, देव मनुष्य जिम निज देह से, भोगवते तीसरे चौथे कल्प के देव, सर्व पाँचवें छठे कल्प के सब, देव कायप्रवीचारी हैं । विषयसुख ये ।। स्पर्शसेवी हैं । रूपदर्शनी हैं ।। ५ ॥ [ ८३
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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