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________________ है श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र के चतुर्थाध्याय का ? * हिन्दी पद्यानुवाद * M मूलसूत्रकार-पूर्वधर महर्षि पूज्य वाचकप्रवर श्री उमास्वाति जी महाराज हिन्दीपद्यानुवादक-शास्त्रविशारद-साहित्यरत्न-कविभूषण-पूज्याचार्य श्रीमद्विजय सुशील सूरीश्वर जी महाराज ॐ चतुर्थ अध्याय ॥ कल्पोपपन्न पर्यन्त देवों के प्रकार ॐ मूलसूत्रम् देवाश्चतुनिकायाः ॥४-१॥ तृतीयः पीतलेश्यः ॥४-२॥ दशा-ऽष्ट-पञ्च-द्वादश-विकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ॥ ४-३ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद देवों के मूल भेद चार, तत्त्वार्थ से ये जानिये । तीसरे जो देव भेद, पीतलेश्या से मानिये ।। कल्पोपपन्न अन्त तक जो, भेद संख्या संग्रही । दशाष्ट पंच द्वादश भेदे, चार देव जाति कही ।। १ ।। * देवों के परिवार और लेश्या * ॐ मूलसूत्रम् इन्द्र-सामानिक-त्रास्त्रिश-पारिषद्या-ऽऽत्मरक्ष - लोकपालाऽनीक-प्रकीर्णकाऽऽभियोग्य-किल्बिषिकाश्चैकशः ॥ ४-४ ॥ त्रास्त्रिश-लोकपालवा व्यन्तर-ज्योतिष्काः ॥ ४-५॥ पूर्वयोन्द्रिाः ॥४-६ ॥ पीतान्तलेश्याः ॥४-७॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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