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________________ ८४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ हिन्दी पद्यानुवाद सातवें, पाठवें कल्प के, देव को अलंकार के । शब्द मात्र से तृप्ति होती, विषयसुख की सबके ।। नौ से द्वादश कल्प तक के, निखिल इन देवों को। देवी-चिन्तन मात्र से, विषय तृप्ति होती सर्व को ॥ ६ ॥ ..... कल्पधारी देवलोक, विविध विषयों से ही भरे । उपरि उपरि भेदविषयी, अधिकतर ये तुष्टि भरे ।। देव कल्पातीत सारे, विषयवासना से शान्त हैं। समभाव में ये स्थिर सदा, सन्तोष सुख में रत रहे ।। ७ ।। * भवनपति देवों के भेद * मूलसूत्रम् ___ भवनवासिनोऽसुर - नाग - विद्युत् - सुपर्णाऽग्नि - वात - स्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमाराः ॥४-११॥ * हिन्दी पद्यानुवाद असुर नाग विद्युत् सुपर्ण, अग्नि वात एवं स्तनित । उदधि द्वीप और दिक्दश, कुमार नाम से विख्यात ।। .. कहे जाते हैं भवनपति के, देव दशविध ये ही हैं। मेरुपर्वत उपत्यका में, उत्तरदिशि निवसित रहे ।। ८ ।। * व्यन्तर देवों के भेद * 卐 मूलसूत्रम् व्यन्तराः किन्नर - किंपुरुषः - महोरग - गन्धर्व-यक्ष-राक्षस-भूत-पिशाचाः ॥४-१२ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद प्रथम किन्नर किंपुरुष द्वितीय महोरग तीसरे । गन्धर्व चौथे यक्ष पंचम, षष्ठ राक्षस है खरे । सप्तम भूत पिशाच अष्टम, ये प्रष्ट व्यन्तर कहे । वे मध्यलोके वास-गमन, भेद-प्रभेद से रहें ।। ८ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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