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________________ ४।४४-४६ ] 5 मूलसूत्रम् - चतुर्थोऽध्यायः दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ॥ ४-४४ ॥ * सुबोधिका टीका * प्रथमायां भूमौ रत्नप्रभायां नारकाणां दशवर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिः ।। ४-४४ । * सूत्रार्थ- पहली रत्नप्रभा नामक भूमि में नारक जीवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है ।। ४-४४ ।। फ मूलसूत्रम् [ ७१ विवेचनामृत 5 पहली भूमि रत्नप्रभा में उत्पन्न नारक जीवों की जघन्यस्थिति का प्रमाण दस हजार वर्ष का है । प्रायुष्य स्थिति के प्रकरण को पाकर अब भवनपति व्यन्तर- ज्योतिष्क देवों की जघन्यस्थिति का भी वर्णन करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं ।। ( ४-४४ ) * भवनपति - व्यन्तरदेवानां जघन्यस्थितिः भवनेषु च ॥ ४-४५ ॥ * सुबोधिका टीका दशवर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिः भवनवासीदेवानां भवति ।। ४-४५ ।। * सूत्रार्थ - भवनवासी देवों की भी जघन्यस्थिति दस हजार वर्ष की है ।। ४-४५ ।। 5 विवेचनामृत 5 भवनवासी देवों की जघन्यस्थिति का प्रमाण दस हजार (१०००० ) वर्ष है । अनुसार व्यन्तर देवों की जघन्यस्थिति प्रागे के सूत्र में बता रहे हैं । ( ४-४५ ) * व्यन्तरदेवानां जघन्यस्थितिः 5 मूलसूत्रम् अब क्रम के व्यन्तराणां च ॥। ४-४६॥ * सुबोधिका टीका दशवर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिः व्यन्तराणां देवानामपि भवति ॥ ४-४६ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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