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________________ ७२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ४।४७-४८ * सूत्रार्थ-व्यन्तर देवों की भी जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है ।। ४-४६ ।। ॐ विवेचनामृत व्यन्तर देवों की जघन्यस्थिति का प्रमाण भी दस हजार वर्ष ही है। व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट स्थिति यहाँ बताने के लिए अब आगे का सूत्र कहते हैं । (४-४६) * व्यन्तरदेवानां उत्कृष्टा स्थितिः * 卐 मूलसूत्रम् परा पल्योपमम् ॥ ४-४७ ॥ * सुबोधिका टीका * व्यन्तरदेवानां उत्कृष्टा स्थितिः एकपल्योपमं भवति ।। ४-४७ ।। * सूत्रार्थ-व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की है ॥ ४-४७ ।। विवेचनामृत व्यन्तरदेवों की उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण एक पल्योपम का है। . क्रम के अनुसार ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट स्थिति अब आगे के सूत्र में बता रहे हैं । (४-४७) * ज्योतिष्कदेवानां उत्कृष्टा स्थिति: 卐 मूलसूत्रम् ज्योतिष्कारणामधिकम् ॥ ४-४८ ॥ * सुबोधिका टीका * ज्योतिष्कनिकायदेवानामुत्कृष्टस्थितिप्रमाणमपि एकपल्योपमात् अधिकं भवति । अधिकस्य प्रमाणं यथा चन्द्रस्य लकवर्षाधिकम्, सूर्यस्य सहस्र कवर्षाधिकम्, ज्योतिष्कदेवीनां उत्कृष्टस्थितिप्रमाणं पल्योपमा परा पञ्चाशत् सहस्र भवति ।। ४-४८ ।। ॐ सूत्रार्थ-ज्योतिष्कनिकाय के देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम से कुछ अधिक है ।। ४-४८ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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