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________________ ७० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ४४३ * सूत्रार्थ-द्वितीय नरकादि में भी पहली-पहली भूमि के नारक जीवों की जो उत्कृष्ट स्थिति होती है, वही आगे की नरकभूमि की जघन्य स्थिति होती है।। ४-४३ ।। + विवेचनामृत है द्वितीयादि नरक भूमि में भी पूर्व-पूर्व की जो उत्कृष्टस्थिति है, वही उत्तर-उत्तर की जघन्यस्थिति होती है। जैसे-पहली भूमि रत्नप्रभा में नारक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण एक सागरोपम का है। वही आगे दसरी भमि शर्कराप्रभा में नारक जीवों की जघन्यस्थिति का प्रमाण है, किन्तु उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण तीन सागरोपम का है। वही आगे की अव्यवहित वालुकाप्रभा में नारक के जीवों की जघन्यस्थिति का प्रमाण है। यही अनुक्रम अन्त तक सातवीं तमस्तमः प्र समस्त भूमियों के सम्बन्ध में समझना। TET. प्रभा भाम तक इस अनुक्रम के अनुसार छठी तमःप्रभा भूमि में जो उत्कृष्टस्थिति का प्रमाण बाईस सागरोपम का है, वही छठी से अव्यवहित आगे की सातवीं भूमि के नारक जीवों की जघन्यस्थिति का प्रमाण जानना चाहिए। इस स्थिति के सम्बन्ध में यह बात विशेषरूप से समझने की है कि-सातवीं नरक भूमि में पाँच बिल-नरक हैं. जिनमें से चार चारों दिशाओं में हैं, तथा एक चारों दिशानों के मध्य में है। जिसको अप्रतिष्ठान नरक कहते हैं। चार दिशाओं के जो चार बिल हैं, उनमें जघन्य ३२ सागरोपम तथा उत्कृष्ट ३३ सागरोपम प्रमाण स्थिति है। परन्तु मध्य के अप्रतिष्ठान नरक में जघन्य उत्कृष्ट भेद नहीं है। वहाँ पर उत्पन्न होने वाले, अथवा रहने वाले नारक जीवों की प्रजघन्योत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम की ही है। * नारकी जीवों की जघन्य स्थिति * दूसरी नरक भूमि- | चौथी नरक छठी नरक१ सागरोपम ७ सागरोपम १७ सागरोपम तीसरी नरक-- पांचवीं नरक सातवीं नरक३ सागरोपम १० सागरोपम २२ सागरोपम ॥(४-४३)
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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