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________________ तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : गुरु, उत्तम उपदेश देने वाले आदि के द्वारा ज्ञान प्राप्त करके हो उसे अभिगम अथवा अधिगम सम्यग्दर्शन कहते हैं। जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ॥ अ०१, सू०४ नव सम्भावपयत्था पएणत्ते, तं जहा-जीवा अजीवा पुण्णं पावो आसवो संवरो निजरा बंधो मोक्खो स्थानाङ्ग स्थान १, सूत्र ६६५ छाया- नव सद्भावपदार्थाः प्रज्ञप्तास्तद्यथा जीवा : अजीवा : पुण्यं पाप : आस्रव : संवरः निर्जरा बन्ध : मोक्षः॥ भाषा टीका-सद्भाव पदार्थ नौ प्रकार के बतलाये गये हैं, और वह इस प्रकार हैं-जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष । संगति- 'तत्त्व' शब्द का मूल 'तत्' है । जिसका अर्थ वह होता है । अतएव 'तत् पना' अथवा 'वह पना' 'तत्त्व' है। दूसरे शब्दों में तत्त्व शब्द का अर्थ सद्भाव अथवा अस्तित्व है । संक्षेप से सात तत्त्व रूप से वर्णन किये जाने में यह तत्त्व कहलाते हैं और विशेष रूप से वर्णन करने में यह पदार्थ कहलाते हैं। उस समय आस्रव और बन्ध से पाप और पुण्य प्रथक कर लिये जाते हैं। संक्षेप विविक्षा में पाप और पुण्य का आस्रव और बन्ध में अन्तर्भाव कर दिया गया है। स्थानाङ्ग में विस्तृत कथन होने से नौ पदार्थों का वर्णन किया गया है। किन्तु सूत्रों में संग्रह नय के आश्रित होकर ही संक्षेप से कथन किया गया है। अत: यहां सात तत्वों का वर्णन है। नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः॥ अ०१, सू०५ जत्थ य ज जाणेज्जा निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं । जत्थवि अ न जाणेजा चउक्कगं निक्खिवे तत्थ ॥ आवस्सयं चउव्विहं पण्णत्ते, तं जहा-नामावस्सयं ठवणावस्सयं दव्वावस्सयं भावावस्सयं ॥ अनुयोगद्वार सूत्र, सूत्र ८
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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