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________________ [ २१९ चत्वारि ध्यानानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - श्रार्तं ध्यानं, रौद्रं ध्यानं, धर्मं ध्यानं, शुक्लं ध्यानम् । भाषा टीका - - ध्यान चार प्रकार के कहे गये हैं: - आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान । छाया - नवमोऽध्यायः परे मोक्ष हेतुः । धम्मसुकाई झाणाई, झाणं तं ९, २९. तु बुहा वए । उत्तराध्ययन अ० ३० गाथा ३५. छाया - धर्मशुक्ले ध्याने, ध्यानं तत् तु बुद्धा वदेयुः । भाषा टीका - धर्म और शुक्ल ध्यान को बुद्ध कहते हैं । छाया - संगति - बुद्धिमानों ने मोक्ष का कारण होने से धर्म और शुक्ल को ही वास्तविक ध्यान माना है । आर्त्तममनोज्ञस्य संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः । ९, ३०. हे झाणे चउविहे पणत्ते, तं जहा - अमणुन्नसंपयोगसंपते तस्स विप्पयोग सति समन्नागए यावि भवइ । व्याख्याप्रज्ञप्ति श० २५, उ०७, सू० ८०३. ध्यानं चतुर्विधं प्रज्ञप्त, अमनोज्ञसम्प्रयोग सम्प्रयुक्तो तस्य विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वा गतश्चापि भवति । भाषा टीका - आर्त ध्यान चार प्रकार का कहा गया है। [ उनमें से प्रथम अनिष्ठ संयोग है ] | अनिष्ट अथवा अप्रिय व्यक्ति से संयोग होने पर उसके वियोग के लिये बारबार चिन्ता करना [ अनिष्ट संयोग आर्तध्यान है ] ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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