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________________ नवमोऽध्यायः [ २३ प्रश्न- भगवन् ! एक प्रकार के बंधवाले वीतरामछद्मस्थ के कितनी परीषह कही गई हैं? उत्तर - गौतम ! उतनी ही होती हैं जितनी छह प्रकार के बन्धवाले के होती हैं। प्रश्न - भगवन् ! एक प्रकार के बन्धवाले सयोगि भवस्थ केवली के कितनी परीषह कही गई हैं ? उत्तर - गौतम ! ग्यारह परीषह कही गई हैं। किन्तु वेदना एक साथ केवल नौ की ही होती है। शेष छै प्रकार के बन्ध वाले के समान होती हैं । हा प्रश्न -भगवन् ! बिना बन्धवाले अयोगि भवस्थ केवलो के कितनी परीषह होती उत्तर- गौतम ! ग्यारह परीषह कही गई हैं। किन्तु अनुभव नौ का ही होता है। जिस समय शीतपरोषह होती है उसी समय उष्णपरीषह नहीं होती । जिस समय उष्णपरीषह होती है उस समय शीतपरोषह नहीं होती । जिस समय चर्यापरीषह होती है उस समय शय्या परीषह नहीं होती। जिस समय शय्या परीषह होती है उसी समय चर्यापरीषह नहीं होती। सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसाम्पराययथाख्यातमिति चारित्रम् । ९, १८. सामाइयत्थ पढम, छेदोवट्ठावणं भवे वीयं । परिहारविसुद्धीयं, सुहुम तह संपरायं च ॥३२॥ अकसायमहक्खायं, छउमत्थस्स जिणस्स वा । एवं चयरित्तकर, चारित्तं होइ आहियं ॥३३॥ उत्तराध्ययन अ० २८, गाथा ३२-३३ छाया- सामायिकमत्र प्रथम, छेदोपस्थानं भवेदद्वितीयम् । परिहारविशुद्धिकं, सूक्ष्मं तथा सम्परायं च ॥३२॥ अकषायं यथाख्यातं, छद्मस्थस्य जिनस्य वा। एतच्चयरिक्तकरं, चारित्रं भवत्याख्यातम् ॥ ३३॥
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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