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________________ २१४ ] तत्त्वार्थसूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : भाषा टोका - सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय, और बिनाकषाय वाला यथाख्यात यह छद्मस्थ अथवा जिनके चारित्र कहे गये हैं । यह कर्मों के समूह को नष्ट करने वाले हैं । अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासन कायक्लेशा बाह्यं तपः । ९, १९. बाहिरए तवे afore पराणत्ते तं जहा - अणसण ऊणोयरिया भिक्खायरिया य रसपरिच्चा । कायकिलेसो पडिसंलीगया वो ( तव होई) ॥ व्याख्याप्रज्ञप्ति शत० २५, उ०७, सु० ८०२. बाह्यतपः छड्विधं मज्ञप्तं, तद्यथा - अनशनः श्रवमौदर्यः भिक्षाचर्या (वृत्तिपरिसंख्यानं ) च रसपरित्यागः । कायक्लेशः प्रतिसंलीनता (विविक्तशय्यासनं ) बाह्य ( तपः भवति ) । - भाषा टीका - बाह्य तप छै प्रकार के कहे गये हैं:- अनशन, श्रवमौदर्य, भिक्षा, चर्या (वृत्तिपरिसंख्यान ), रसपरित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता ( अथवा विविक्त शय्याशन ) । प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्ग छाया ध्यानान्युत्तरम् । ९, २०. अभितर तवे छवि पराणत्ते, तंजहा - पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ, भाणं विसग्गो । व्याख्याप्रज्ञप्ति श० २५, उ० ७, सू० ८०२. आभ्यन्तरतपः षड्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा - प्रायश्चित्तं विनयः, वैयावृत्यं, स्वाध्यायः, ध्यानं, व्युत्सर्गः । छाया 9
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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