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________________ तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः भाषाटीका-सम्यग्दर्शन के बिना सम्यग्ज्ञान होना असम्भव है, ज्ञान के बिना चारित्र के गुण प्रगट नहीं हो सकते, चारित्रगुण हीन का कर्मो से मोक्ष नहीं हो सकता और बिना कर्मो का मोक्ष ( छुटकारा ) हुए निर्वाण होना असम्भव है। सम्यक् तीन प्रकार का कहा गया है । ज्ञानसम्यक् , दर्शनसम्यक् और चारित्रसम्यक। जिनेन्द्र भगवान् की कही हुई वास्तविक मोक्ष मार्ग की गति को सुनो । वह गति निम्नलिखित चार कारणों से युक्त है और ज्ञान तथा दर्शन उसके लक्षण हैं। लोकालोक को देखने वाले जिन भगवान् ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप यह चार कारण उस मोक्ष मार्ग के बतलाये हैं। ___ उन ज्ञान, दर्शन, चारित्र, और तप के मार्ग को प्राप्त करने वाले जीव उत्कृष्ट गति (मोक्ष) को प्राप्त करते हैं। संपरायसरागसंजमे दुविहे पएणत्ते, तं जहा- पढमसमयबादर० अपढमसमयबादरसं०। अहवा चरिमसमय० अचरिमसमय० । अहवा बायरसंपरायसरागसंजमे दुविहे पएणते, तं जहा-पडिवाति चेव अपडिवाति चेव । वीयरागसंजमे दुविहे पएणत्ते, तं जहाउवसंतकसायवीयरागसंजमे चेव खीणकसायवीयरागसंजमे चेव । उवसंतकसायवीयरागसंजमे दुविहे पएणत्ते, तं जहा-पढमसमयउवसंतकसायवीतरागसंजमे चेव अपढमसमयउव० । अहवा चरिमसमय० अचरिमसमय० । खोणकसायवीवरागसंजमे दुविहे पएणत्ते, तं जहा- छउमत्थखीएकसायवीयरागसंजमे चेव केवलिखीणकसायवीयरागसंजमे चेव। छउमत्थखीणकसायवीयरागसंजमे दुविहे पएणत्ते, तं जहा-सयंबुद्धछउमत्थखीणकषाय. बुद्धबोहियछउमत्थ० । सयंबुद्धछउमत्थ० दुविहे पएणत्ते, तं जहा- पढमसमय० अपढमसमयः । अथवा चरिमसमय० अचरिमसमय० । केवलिखीणकसायवीतरागसंजमे दुविहे परणते, तं जहा-सजोगिकेवलिखीणकसाय. अजोगिकेवलिखीणकसायवीयराग० । सजोगिकेवलिखीणकसायसंजमे दुविहे पएणते, तं जहा- पढमसमय० अपढमसमय० । अहवा चरिमसमय० अचरिमसमय० । अजोगिकेवलिखीणकसाय० संजमे दुविहे पण्णते, तं जहा-पढमसमय० अपढमसमय० । अहवा चरिमसमय० अचरिमसमय० ॥ स्थानांगसूत्र स्थान २ उद्दे० १ सूत्र ७२.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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