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________________ १८ ] तत्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्धयः नाम कर्म, तैजसबन्धन नाम कर्म, और कार्मणबन्धन नाम कर्म । जिसके उदय से चौदारिक पन्ध हो सो औदारिक बन्धन नाम कर्म है। इसी प्रकार शेष बन्धनों का लक्षण भी लगा लेना चाहिये। ६. जिसके उदय से औदारिक आदि शरीरों का छिद्र रहित अन्योन्यप्रदेशानुप्रवेशरूप संगठन ( एकता ) हो उसे शरीरसंघातनाम कर्म कहते हैं। यह भी पांचो शरीरों की अपेक्षा से औदारिकशरीरसंघात नाम कर्म आदि पांच प्रकार का है। ७. जिसके उदय से शरीर के अस्थिपंजर (हाड़ ) आदि के बन्धनों में विशेषता हो उसे संहनन नाम कर्म कहते हैं । वह छह प्रकार का है - १ बजवृषभनाराचसंहनन, २ पवनाराचसंहनन, ३ नाराचसंहनन, ४ अर्द्धनाराचसंहनन, ५ कोलकसंहनन, और ६ असंप्राप्तामृपाटिका संहनन । नसों में हाड़ों के बन्धने का नाम ऋषभ या वृषभ है, नाराच नाम कीलने का है और संहनन नाम हाड़ों के समूह का है । सो जिस कर्म के उदय से वृषभ ( वेष्टन ), नाराच ( कील) और संहनन (अस्थिपंजर ) ये तीनों ही वन के समान अभेद्य हों, उसे वनवृषभनाराच संहनन कहते हैं। जिसके उदय से नाराच और संहनन तो वञमय हों और वृषभ सामान्य हो, वह बजनाराच संहनन नाम कर्म है। जिसके उदय से हाड़ तथा सन्धियों के कीले तो हों, परन्तु वे वनमय न हों और वनमय वेष्टन भी न हो, सो नाराच संहनन नाम कर्म है। जिसके उदय से हाड़ों की संधियां श्रद्ध कीलित हों, अर्थात कोले एक तरफ तो हों दूसरी तरफ न हों, वह अर्द्धनाराच संहनन नाम कर्म है। जिसके उदय से हाड़ परस्पर कौलित हों, सो कीलक संहनन नाम कर्म है। जिसके उदय से हाड़ों की संधियां कोलित तो न हों, किन्तु नसों, स्नायुओ और मांस से बन्धी हों वह असंप्राप्तामृपाटिका संहनन नाम कर्म है। ____. जिसके उदय से शरीर की आकृति (आकार ) उत्पन्न हो, उसे संस्थान नाम कर्म कहते हैं। यह छह प्रकार का है - १ समचतुरस्रसंस्थान, २ न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान, ३ सादिसंस्थान, ४ कुब्ज संस्थान, ५ वामनसंस्थान, और ६ हुडक संस्थान । जिसके उदय से ऊपर, नीचे और मध्य में समान विभाग से शरीर की आकृति
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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