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________________ अष्टमोऽध्यायः [ १४ उत्पन्न हो उसे समचतुरस्र संस्थान नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से शरीर का नाभि के नीचे का भाग वटवृक्ष के समान पतला हो और ऊपर का स्थूल व मोटा हो, वह न्यग्रोध परिमंडल संस्थान नाम कर्म है। जिसके उदय से शरीर के नीचे का भागस्थूल या मोटा हो और ऊपर का पतला हो, उसे स्वातिसंस्थान नाम कर्म कहते हैं। जिसके उदय से पीठ के भाग में बहुत से पुद्गलों का समूह हो अर्थात् कुबड़ा शरीर हो, उसे कुजक संस्थान नामकर्म कहते हैं । जिसके उदय से शरीर बहुत छोटा हो वह वामन संस्थान नामकर्म है। और जिसके उदय से शरीर के अंग उपांग कहीं के कहीं, छोटे, बड़े वा संख्या में न्यूनाधिक हों-इस तरह विषम बेडौल आकार का शरीर हो, उसे हु डक संस्थान नामकर्म कहते हैं। १. जिसके उदय से शरीर में वर्ण (रंग ) उत्पन्न हो, उसे वर्णनामकर्म कहते हैं। यह पांच प्रकार का है :-१. शुक्लवर्ण नामकर्म, २. कृष्णवर्ण नामकर्म, ३ नीलवर्ण नाम कर्म, ४. रक्तवर्ण नामकर्म, और ५. पीतवर्ण नामकर्म ।। १०. जिसके उदय से शरीर में गंध प्रगट हो, सो गन्धनामकर्म है। यह दो प्रकार का है। एक सुगन्ध नामकर्म, दूसरा दुर्गन्ध नामकर्म ।। ११. जिसके उदय से देह में रस ( स्वाद ) उत्पन्न हो उसे रसनाम कर्म कहते हैं । यह पांच प्रकार का है :- १. तिक्तरस, २. कटुरस, ३. कषायरस, ४. अम्लरस और ५. मधुर रसनामकर्म । १२. जिसके उदय से शरीर में स्पर्शगुण प्रगट होता है उसे स्पर्शनामकर्म कहते हैं। यह आठ प्रकार का है :- १. कर्कशस्पर्श, २. मृदुस्पर्श, ३. गुरुस्पर्श, ४. लघुस्पर्श, . स्निग्ध स्पर्श, ६. रूक्षस्पर्श, ७. शीत स्पर्श और ८. उष्णस्पर्शनामकर्म । १३. जिसके उदय से जीवों का शरीर लोहपिंड के समान भारीपन के कारण नीचे नहीं पड़जाता है, और आक की रुई के समान हलकेपन से उड़ भी नहीं जाता है उसको गुरुलघु नामकर्म कहते हैं । यहां पर शरीर सहित आत्मा के सम्बन्ध में अगुरुलघु कर्मप्रकृति मानी गई है। द्रव्यों में जो अगुरुलघुत्व है वह उनका स्वभाविक गुण है। _ जिसके उदय से शरीर के अवयव ऐसे होते हैं कि उनसे उसीका बंधन वा घात हो जाता हो उसे उपघात नामकर्म कहते हैं। १५. जिसके उदय से पैने सींग, नख वो डंक इत्यादि पर को घात करने वाले
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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