SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८४ ] तस्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - कषायवेदनीयः नोकषायवेदनीयः । कषायवेदनीयः भगवन्! कतिविधः प्रज्ञप्तः १ " गौतम ! षोडशविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - अनन्तानुबन्धीक्रोधः, अनन्तानुबन्धीमानः, अ० माया, घ० लोभः; श्रमत्याख्यानक्रोधः, एवं मानः, माया, लोभः; प्रत्याख्यानावरणक्रोधः, एवं मानः, माया, लोभः संज्वलनक्रोधः, एवं मानः, माया, लोभः 1 नोकषायवेदनीयं भगवन! कर्म कतिविधं प्रज्ञप्तं १ गौतम ! नवविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा - स्त्रीवेदवेदनीयः, पुरुषवेदवेदनीयः, नपुंसकवेदवेदनीयः, हास्यः, रतिः, अरतिः, भयः, शोकः, जुगुप्सा । प्रश्न- भगवन्! मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है--दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय | प्रश्न- भगवम्! दर्शन मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - गौतम ! तीन प्रकार का कहा गया है -- सम्यक्त्व वेदनीय, मिध्यात्व वेदनीय, सम्यङ् मिध्यात्ववेदनीय । प्रश्न- भगवन् ! चारित्र मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर- गौतम दो प्रकार का कहा गया है--कषाय वेदनीय और नो कषायवेदनीय । प्रश्न- भगवन्! कषायवेदनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर--- :- गौतम ! वह सोलह प्रकार का कहा गया है : -- अनन्तानुबन्धी क्रोध, अनन्तानुबन्धीमान, अ० माया, अ० लोभ; अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ; प्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ और संज्वलन क्रोध मान माया लोभ । प्रश्न---भगवन् ! नो कषाय वेदनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? र-गौतम ! वह नौ प्रकार का कहा गया है : स्त्रीवेदनय, पुरुषवेदनय, नपुंसक वेदनय, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, और जुगुप्सा । उत्तर-
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy