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तस्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय :
गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - कषायवेदनीयः नोकषायवेदनीयः । कषायवेदनीयः भगवन्! कतिविधः प्रज्ञप्तः १
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गौतम ! षोडशविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - अनन्तानुबन्धीक्रोधः, अनन्तानुबन्धीमानः, अ० माया, घ० लोभः; श्रमत्याख्यानक्रोधः, एवं मानः, माया, लोभः; प्रत्याख्यानावरणक्रोधः, एवं मानः, माया, लोभः संज्वलनक्रोधः, एवं मानः, माया, लोभः 1 नोकषायवेदनीयं भगवन! कर्म कतिविधं प्रज्ञप्तं १ गौतम ! नवविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा - स्त्रीवेदवेदनीयः, पुरुषवेदवेदनीयः, नपुंसकवेदवेदनीयः, हास्यः, रतिः, अरतिः, भयः, शोकः, जुगुप्सा ।
प्रश्न- भगवन्! मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है--दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय |
प्रश्न- भगवम्! दर्शन मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - गौतम ! तीन प्रकार का कहा गया है -- सम्यक्त्व वेदनीय, मिध्यात्व वेदनीय, सम्यङ् मिध्यात्ववेदनीय ।
प्रश्न- भगवन् ! चारित्र मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर- गौतम दो प्रकार का कहा गया है--कषाय वेदनीय और नो कषायवेदनीय । प्रश्न- भगवन्! कषायवेदनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर---
:- गौतम ! वह सोलह प्रकार का कहा गया है : -- अनन्तानुबन्धी क्रोध, अनन्तानुबन्धीमान, अ० माया, अ० लोभ; अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ; प्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ और संज्वलन क्रोध मान माया लोभ ।
प्रश्न---भगवन् ! नो कषाय वेदनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? र-गौतम ! वह नौ प्रकार का कहा गया है : स्त्रीवेदनय, पुरुषवेदनय, नपुंसक वेदनय, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, और जुगुप्सा ।
उत्तर-