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________________ १५८ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : छाया- पञ्चयामस्य पञ्चविंशतयः भावनाः प्रज्ञप्ताः । भाषा टीका-पांचों व्रतों की पांच २ के हिसाब से पच्चीस भावनाएं कही गई हैं। वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च। ईरिया समिई मणगुत्ती वमगुत्ती आलोयभायणभोयणं आदाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिई। समवायांग, समवाय २५. छाया- ईर्यासमितिः मनोगुप्तिः वचोगुप्तिः आलोकभाजनभोजनं आदान भण्डमात्रनिक्षेपणासमितिः । भाषा टीका-ईर्या समिति, मनोगुप्ति, वचन गुप्त, आलोकभाजनभोजन, आदानभण्ड मात्र निक्षेपणा समिति (आदान निक्षेपण समिति)। [यह पांच अहिंसा महाव्रत की भावनाएं हैं।] क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणं च पंच। अणुवीति भासणया कोहविवेगे लोभविवेगे भयविवेगे हासविवेगे। समवायांग, समय २५. छाया- अनुविचिन्त्यभाषणता क्रोधविवेकः लोभविवेकः भयविवेकः हास्य विवेकः। भाषा टोका-सोच समझ के बोलना, क्रोध का त्याग, लोभ का त्याग, भय का त्याग और हास्य का त्याग [यह पांच सत्य महाव्रत की भावनाएं हैं। ] शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैयशुद्धिसद्धर्माऽविसंवादाः पञ्च।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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