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षष्ठोऽध्यायः कायवाङ्मनः कर्म योगः।
तिविहे जोए पएणते । तं जहा-मणजोए, वइजोए, कायजोए।
ज्याल्या प्राप्ति० शतक० १६ उद्दे० १ सूत्र ५६४ छाया- त्रिविधः योगः प्रज्ञप्तः । तद्यथा- मनःयोगः पाग्योमः
काययोगः। भाषा टीका-योग तीन प्रकार का होता है-मन योग, वचन योग और भय योग।
सासवः।
पञ्च आसवदारा पण्णत्ता. तं जहा-मिच्छ, अविरई, पमाया, कासाया. जोगा।
समवायांग समवाय ५. छाया- पञ्च प्रास्रवद्वाराः प्रज्ञप्ताः तद्यथा- मिथ्यात्वं, अविरवि:,
प्रमादाः, कषायाः, योगाः। भाषा टीका-आस्रव के पांच द्वार होते हैं-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग।
संगति- यहां सूत्र और आगम वाक्य में सामान्य तथा विशेष कथन का भेद है। सूत्रकार ने योग को हो आस्रव माना है, किन्तु आगम वाक्य में भेद विवक्षा से मानब के पांचों कारणों को ही मानव माना है, जिनमें योग भी एक कारण है।