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तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय :
द्वौ भूतेन्द्र प्रज्ञप्तौ तद्यथा - सुरूपश्चैव प्रतिरूपश्चैव । ( प्रतिरूपोऽतिरूपश्च ) द्वौ यक्षेन्द्र प्रज्ञप्तौ तद्यथा - पूर्णभद्रश्चैव मणिभद्रश्चैव । द्वौ राक्षसेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ तद्यथा – भीमश्चैव महाभीमश्चैव । afaaiद्र प्रज्ञप्तौ तद्यथा – किन्नरश्चैव किम्पुरुषश्चैव । athayeपेन्द्र प्रज्ञप्तौ तद्यथा - सत्पुरुषश्चैव महापुरुषश्चैव । aौ महोरगेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ तद्यथा - अतिकायश्चैव महाकायश्चैव । ata प्रज्ञप्तौ तद्यथा - गीतरतिश्चैव गीतयशश्चैव
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भाषा टीका - ( भुवनवासियों के अन्दर ) १. असुर कुमारों के दो इन्द्र होते हैं- - चमर और बलि । २. नागकुमारों के दो इन्द्र होते हैं – धरण और भूतानन्द | ३. सुपर्णकुमारों के दो इन्द्र होते हैं - वेणुदेव और वेणुदारी ।
४. विद्युत्कुमारों के दो इन्द्र होते हैं - हरि और हरिसह ।
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५. अग्निकुमारों के दो इन्द्र होते हैं – अग्नि शिख और अग्नि माणव । ६. द्वीपकुमारों के दो इन्द्र होते हैं - पूर्ण और वशिष्ट । ७. उदधिकुमारों के दो इन्द्र होते हैं – जलकान्त और जलप्रभ । ८. दिक्कुमारों के दो इन्द्र होते हैं - श्रमितगति और अमितवाहन । ६. वातकुमारों के दो इन्द्र होते हैं - वेलम्ब और प्रभञ्जन । १०. स्तनित कुमारों के दो इन्द्र होते हैं – घोष और महाघोष |
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( इस प्रकार भुवनवासियों के बीस इन्द्रों का वर्णन किया गया ।
अब व्यन्तरों के इन्द्रों का वर्णन किया जाता है। )
१. पिशाचों के दो इन्द्र होते हैं - काल और महाकाल ।
२. भूतों के दो इन्द्र होते हैं - सुरूप और प्रतिरूप ( अथवा प्रतिरूप और अतिरूप )
३. यक्षों के दो इन्द्र होते हैं - पूर्ण भद्र और मणिभद्र । ४. राक्षसों के दो इन्द्र होते हैं – भीम और महाभीम | ५. किन्नरों के दो इन्द्र होते हैं
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- किन्नर और किम्पुरुष ।