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________________ १०० ] तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : द्वौ भूतेन्द्र प्रज्ञप्तौ तद्यथा - सुरूपश्चैव प्रतिरूपश्चैव । ( प्रतिरूपोऽतिरूपश्च ) द्वौ यक्षेन्द्र प्रज्ञप्तौ तद्यथा - पूर्णभद्रश्चैव मणिभद्रश्चैव । द्वौ राक्षसेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ तद्यथा – भीमश्चैव महाभीमश्चैव । afaaiद्र प्रज्ञप्तौ तद्यथा – किन्नरश्चैव किम्पुरुषश्चैव । athayeपेन्द्र प्रज्ञप्तौ तद्यथा - सत्पुरुषश्चैव महापुरुषश्चैव । aौ महोरगेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ तद्यथा - अतिकायश्चैव महाकायश्चैव । ata प्रज्ञप्तौ तद्यथा - गीतरतिश्चैव गीतयशश्चैव 1 भाषा टीका - ( भुवनवासियों के अन्दर ) १. असुर कुमारों के दो इन्द्र होते हैं- - चमर और बलि । २. नागकुमारों के दो इन्द्र होते हैं – धरण और भूतानन्द | ३. सुपर्णकुमारों के दो इन्द्र होते हैं - वेणुदेव और वेणुदारी । ४. विद्युत्कुमारों के दो इन्द्र होते हैं - हरि और हरिसह । - ५. अग्निकुमारों के दो इन्द्र होते हैं – अग्नि शिख और अग्नि माणव । ६. द्वीपकुमारों के दो इन्द्र होते हैं - पूर्ण और वशिष्ट । ७. उदधिकुमारों के दो इन्द्र होते हैं – जलकान्त और जलप्रभ । ८. दिक्कुमारों के दो इन्द्र होते हैं - श्रमितगति और अमितवाहन । ६. वातकुमारों के दो इन्द्र होते हैं - वेलम्ब और प्रभञ्जन । १०. स्तनित कुमारों के दो इन्द्र होते हैं – घोष और महाघोष | - ( इस प्रकार भुवनवासियों के बीस इन्द्रों का वर्णन किया गया । अब व्यन्तरों के इन्द्रों का वर्णन किया जाता है। ) १. पिशाचों के दो इन्द्र होते हैं - काल और महाकाल । २. भूतों के दो इन्द्र होते हैं - सुरूप और प्रतिरूप ( अथवा प्रतिरूप और अतिरूप ) ३. यक्षों के दो इन्द्र होते हैं - पूर्ण भद्र और मणिभद्र । ४. राक्षसों के दो इन्द्र होते हैं – भीम और महाभीम | ५. किन्नरों के दो इन्द्र होते हैं - - किन्नर और किम्पुरुष ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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