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________________ प्राक्कथन 'धर्म' और 'दर्शन' दो भिन्न शब्द हैं तथा इनके अर्थ में भी भिन्नता है। धर्म जहाँ आचरण प्रधान होता है वहाँ दर्शन में विचार की प्रधानता होती है। धर्म में श्रद्धा का पक्ष प्रबल होता है, तो दर्शन में तर्क का बल अधिक होता है । दर्शन के बिना धर्म में अन्धश्रद्धा अथवा अन्धमान्यताएँ स्थान ले लेती हैं। इसलिए धर्म में आने वाली विकृतियों का शोधन दर्शन से सम्भव है । मात्र दर्शन भी जीवन को तब तक सार्थक नहीं बनाता जब तक व्यक्ति आचरण को नहीं सुधारता है। इसलिए धर्म एवं दर्शन एक-दूसरे के पूरक हैं। धर्म से व्यापक क्षेत्र है दर्शन का । धर्म का क्षेत्र आत्म-शुद्धि एवं उसके उपायों तक सीमित है, जबकि दर्शन के अन्तर्गत लोक, तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा, प्रमाणमीमांसा एवं आचारमीमांसा की भी चर्चा समाविष्ट हो जाती है। जैन परम्परा धर्म एवं दर्शन दोनों से समृद्ध है। इसमें अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, संयम, तप, स्वाध्याय, ध्यान, सामायिकादि षडावश्यक, समाधि - मरण आदि विषय आचार - प्रधान होने के कारण धर्म से सम्बद्ध हैं। किन्तु जब इनमें वैचारिकता एवं तर्कसंगतता का समावेश होता है तो ये विषय दर्शन के क्षेत्र में आचारमीमांसा से जुड़ जाते हैं। लोक में विद्यमान धर्मास्तिकाय आदि षड्द्रव्य, बन्धन एवं मुक्ति की प्रक्रिया से सम्बन्धित जीवादि नवतत्त्व, कर्म-सिद्धान्त, अनेकान्तवाद आदि विषय विचारप्रधान होने के कारण दार्शनिक हैं तथा तत्त्वमीमांसा से सम्बद्ध हैं। मतिज्ञान आदि पंचविध ज्ञानों की चर्चा ज्ञानमीमांसा से तथा प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रमाणों की चर्चा प्रमाणमीमांसा से युक्त है। अनेक लोगों की यह भ्रान्त धारणा है कि जैनदर्शन में कोई मौलिकता नहीं है, मात्र वैदिक दर्शनों के विचारों का ही इसमें समावेश कर लिया गया है। वस्तुतः यह आक्षेप उन लोगों का है जो जैनदर्शन की मौलिकता एवं व्यापक दृष्टि से अनभिज्ञ हैं। जैनदर्शन की मौलिकता तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा एवं आचारमीमांसा सभी स्तरों पर दृग्गोचर होती है । यदि जैनदर्शन के कतिपय पारिभाषिक शब्दों पर ही दृष्टिपात किया जाए तो भी इसकी मौलिकता का अनुमान सहज हो जाता है । उदाहरण के लिए लेश्या, गुणस्थान, जीवस्थान, मार्गणास्थान, दण्डक, औदारिक
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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