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________________ ४४ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् कुमार का श्याम वर्ण और हाथी का चिह्न है, सब तरह तरह के आभूषण और हथियार वाले होते हैं। (१२) व्यन्तराः किम्मरकिम्पुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षस भूतपिशाचाः। १. किन्नर, २. किम्पुरुष, ३. महोरग, ४. गंधर्व, ५. यक्ष, ६. राक्षस, ७. भूत और ८ पिशाच ये आठ तरह के व्यन्तर है। ऊर्ध्व, अधो और तिर्यग इन तीनों लोक में भवन-नगर और आवासों में वे रहते हैं । स्वतन्त्रता से या परतन्त्रता से अनियत गती से अक्सर वे चारों तरफ रखडते हैं. कोई तो मनुष्य की भी चाकर के माफिक सेवा करता है, अनेक तरह के पर्वत गुफा और वन वगेरा में रहते हैं इससे वे व्यन्तर कहलाते है। किन्नर का नील वर्ण और अशोक वृक्ष का चिह्न है, किंपुरुष का श्वत वर्ण और चम्पक वृक्ष का चिह्न है, महोरग का श्याम वर्ण और नाग वृक्ष का चिह्न है, गान्धर्व का रक्त वर्ण और तुबह वृक्ष का चिह्न हे, यक्ष का श्याम वर्ण और वट वृक्ष का चिह्न है, राक्षम का श्वेत वर्ण और खट्वांग का चिह्न है, भूत का वर्ण काला और सुलस वृक्ष का चिह्न है, और पिशाच का वर्ण श्याम और कदम्ब वृक्ष का चिह्न हैं. ये तमाम चिह्न ध्वजा में होते हैं। (१३) ज्योतिष्काः सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च । सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारा इन पांच भेद के ज्योतिष्क देवता होते हैं. सूत्र में समास नहीं किया चन्द्र से सूर्य को पहला लिया है इससे यह जाहिर होता है कि-सूर्यादिक के यथाक्रम से ज्योतिष्क देव ऊँचे रहे हुवे हैं. यानी
SR No.022521
Book TitleTattvarthadhigam Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1971
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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