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________________ चतुर्थोऽध्यायः परेsप्रवीचाराः । (१०) बाकी के ( मैत्रेयक और अनुत्तर विमान के ) देव अप्रवीचारे ( विषयसेवन रहित ) होते हैं । ४३ अल्प संक्लेश वाले होने से वे स्वस्थ और शांत होते हैं। पांचों प्रकार के विषयसेवन किये बिना भी बेहद आनन्द उनको होता है । (११) भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधि द्वीपदिककुमाराः | भवनवासी देवों के १० असुरकुमार, २ नागकुमार, ३. विद्युतकुमार, ४. सुवर्णकुमार, ५. अग्निकुमार, ६. वायुकुमार, ७. स्तनितकुमार, ८. उदधिकुमार, ६. द्वीपकुमार, १० दिक्कुमार । ये दस भेद हैं । कुमार की तरह सुन्दर दिखाव वाले मृदु मधुर और ललित गति वाले, शृंगार सहित सुन्दर वैक्रियरूप वाले, कुमारों की तरह उद्धत वेष भाषा शस्त्र तथा आभूषण वगेरा वाले, कुमार की तरह उत्कट राग वाले और क्रीडा में तत्पर होने से वे कुमार कहलाते हैं । असुर कुमार का वर्ण काला और उनके मुकुट में चूडामणी का चिह्न (निशान ) है, नाग कुमार का वर्ण काला और ऊनके मस्तक में सर्प का चिह्न है, विद्युत् कुमार का सफेद वर्ण और वज्र का चिह्न है, सुवर्ण कुमार का वर्ण श्याम और गरुड का चिह्न है, अग्नि कुमार का वर्ण शुक्ल और घट का चिह्न है । वायुकुमार का शुद्ध वर्ण और अश्व का चिह्न है, स्तनित कुमार का कृष्ण वर्ण और वर्धमान ( शराव संपुट ) का चिह्न है । उदधि कुमार का वर्ण श्याम और मकर का चिह्न है । द्वीप कुमार का वर्ण श्याम और सिंह का चिह्न है और दिक
SR No.022521
Book TitleTattvarthadhigam Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1971
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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