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________________ तत्त्वाथसूत्र वौ वा संवेगवैराग्यार्थम् ॥१२॥ प्रमत्तयोगात्लाणव्यपरोपणं हिंसा ॥ १३ ॥ असदभिधानमनृतम् ॥ १४ ॥ अदत्तादानं स्तयम् ॥ १५ ॥ मैथुनमब्रह्म ॥ १६ ॥ मूर्छा परिग्रहः ॥१७॥ निःशल्यो व्रती ॥१८॥ अगार्यनगारश्च ॥१९॥ अणुव्रतोऽगारी ॥२०॥ दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणा-- तिथिसंविभागवतसम्पन्नश्च ॥ २१ ॥ मारणान्तिकीं लेख संसार शरीर स्वभाव । चिंतन होय विरक्त स्वभाव ॥ वंश परमाद योग होय । जीवघात सो हिंसा सोय ॥१२॥ सवैय्या २३। असत्य भने सो झूठ कहो, विनैदीयो दान सो चोरी बखानो। मैथुन जान अब्रह्म सही, ममताको प्रसार परिग्रह मानो ॥ मिया माया निदान सु बर्जित, सोई व्रती निरशल्य कहानो॥ सो व्रत दोय प्रकार यती, घरै रहित व्रती घर सहित सु भानो॥१३॥ अनुव्रतधारक श्रावक हैं, दिगै देश प्रमान अनर्थको त्यागी॥ प्रोषध और समायिक धारक, भोगें भोग प्रमाण नुरागी ॥ चार प्रकार सुदानको दायक, इह विध सातौं शील सु पागी मेरेणके अंत सल्लेखन धारत, होय यती सम सो बढभागी ॥१४॥
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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