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________________ भाषा छंद सहित। तानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीरसंस्कारत्यागाः पञ्च ॥७॥ मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्च ॥ ८॥ हिंसादिष्विहामुत्रापायावद्यदर्शनम् ॥९॥ दुःखमेव वा ॥ १० ॥ मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थानि च सत्त्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनयेषु ॥११॥ जगत्कायखभाइस्त्रीरागकथा अरु अंग । सुनै निरन्तर बढ़े अनंग ॥६॥ पूर्वभोग चिन्ता सुन जान । पुष्ठ अहार करै सुखमान ॥ संस्कार सब त्याग विचार । ब्रह्म भावना पांच निहार ॥७॥ मनको लगैं भले अरु बुरे । विषय पांच पच इंद्री खरे ॥ तिनमैं राग भाव तजिदेह । पंच भावना परिग्रह एह ॥८॥ साग्ठा। हिंसादिक सब पाप, करें नाश इस जगतमें । परभवमें संताप, देहिं निगोद रु नरकमें ॥९॥ होय सर्बदा दुक्ख, इन हिंसादिक पापते । जो चाहो अब सुक्ख, त्यागौ मन बच काय कर ॥१०॥ . चौपाई। सब जीवनमें मैत्री भाव । गुण अधिके लखि आनंद पाव ॥ दीन दुखीपर करुणाधार । धर्मविमुख मध्यस्थ निहार ॥११॥
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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