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________________ तत्वार्थसूत्र । देशसर्वतोऽणुमहती ॥२॥ तत्स्थैर्यार्थ भावनाः पञ्च पञ्च ॥३॥ वामनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च ॥ ४॥क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणं च पञ्च ॥५॥ शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धिसधौविसंवादाः पञ्च ॥ ६॥ स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरइन पांचौसे रहित जु होय। पंच विरत तसुनाम सु जोय ॥१॥ देशत्याग सो अणुव्रत जान । त्याग महाव्रत सरब निधान ॥ इन व्रत्तनकी इस्थिति कार । भावन पांच पांच निरधार ॥२॥ मन अरु बचन गुप्ति सुखकार। देख चलै अरु धेरै निहार ॥ खान पान बिधि निरख करेय । वृत्त अहिंसा पंच गिनेय॥३॥ को) लोभ भय हास्य विहाय । पुनि विचार बोलै सुखदाय॥ |हित मितकारी वचन सुहाय । सत्य भावना पंच गिनाय ॥ ४॥ सूनीगृह अरु ऊजर ठाम । वाश तहांको जान निकाम ॥ साधर्मीसों धर्ममझार । करै विवाद कदापि न जार ।। रोक टोक नहीं करै सुजान ।परोपरोधाकरण सु मान ॥५॥ भिक्षा लेय शुद्ध मनधार । भावन पंच अचौर्य निहार ॥ -
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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