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________________ भाषा छंद संहित । २९ सौधर्मेशानयोः सागरोपमें अधिके ॥ २९ ॥ सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्त ॥ ३० ॥ त्रिसप्तनवेकादशत्रयोदपञ्चदशभिरधिकानि तु ॥ ३१ ॥ आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥ ३२ ॥ अपरा पल्योपममधिकम् ।। ३३ ।। परतः परतः पूर्वापूर्वानन्तराः ॥ ३४ ॥ नारकाणां च द्वितीयादिषु यह विध उत्तम आयु समान । भवन वाशि देवनकी जान ॥ १८ ॥ के अधिक दो सागर सार । सऊधर्म ईशान मझार || सनत कुमार महेंद्र विख्यात । सागर सात सु जानो भ्रात ||१९|| जुँगेल तीसरे दशकी जान । चौथे जुगल सु चौदह मान ॥ जुगल पांचवें सोलह लेउ । छटे अठारह सागर देउ ॥ २० ॥ जुगल सातवें बीस निहार । बाइस जुगल आठमें धार ॥ नवे ग्रीक इकतीस बखान । नवें नवोत्तर बत्तिस मान ॥ २१ ॥ पंच पंचोत्तर तेतिस आयु । जधैन्य पल्य किंचित अधिकायु|| प्रथम आयु उतकृष्टि कहान । सो जघन्य अगले में जान ॥ २२ ॥ यही भांति नरकनके माहिं । आयु भेद जानो शक नाहिं || 1 ३३ पहले युगल में जघन्य आयु कुछ अधिक एक पत्की हैं। २५
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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